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________________ जैन साहित्य का वृहद् इतिहास गई है। इसमें चार अध्याय हैं जिनमें कुल मिलाकर ३१०६ श्लोक हैं। यह प्रसादपूर्ण एक संस्कृत काव्य है। इसमें जन्मकाल से सौतेले भाइयों के डाह के कारण श्रीचन्द्र का माता-पिता से वियुक्त होकर एक वणिक के घर में पालन, युवा होने पर देश-देशान्तरों में भ्रमण, अनेक रूपवती कन्याओं से विवाह, अनेकों अद्भुत कार्यों का प्रदर्शन तथा अन्त में अपने माता-पिता से भेंट, साम्राज्यपालन आदि का वर्णन तथा उसकी तपस्या का निरूपण किया गया है। बीचबीच में अनेक प्राकृत पद्य उधृत किये गए हैं। इस ग्रन्थ का आधार कोई प्राचीन प्राकृत कृति है। रचयिता और रचनाकाल-ग्रन्थ के अन्त में दिये गये निम्न पद्य से ज्ञात होता है कि सं० ५९८ में सिद्धर्षि ने किसी प्राकृत चरित्र के आधार से इसे संस्कृत में बनाया है : वस्वकेषुमिते वर्षे ( ५९८), श्रोसिद्धर्षिरिदं महत् । प्राक् प्राकृतचरित्राद्धि, चरित्रं संस्कृतं व्यवधात् ।। ९५९ ॥ पर यह इतनी प्राचीन रचना नहीं मालूम होती। इस ग्रन्थ की एक अन्य प्रति में इसे गुणरत्नसूरि की कृति कहा गया है। हमें गुणरत्नसूरि का विशेष परिचय नहीं मिलता। यदि यह प्रसिद्ध कृति 'उपमितिभवप्रपञ्चाकथा' के कर्ता सिद्धर्षि द्वारा रचित है तो इसका उपरिनिर्दिष्ट समय ठीक नहीं। सिद्धर्षि (९०६ ई०) दशवे शतक के विद्वान् थे। इस रचना में 'उपमितिभवप्रपञ्चा' जैसी उदात्तता भी नहीं। श्रीचन्द्रचरित्रनामक दो अन्य रचनाओं का भी उल्लेख मिलता है। एक के कर्ता अज्ञात हैं और दूसरे के कर्ता शीलसिंहगणि हैं जो आगमगच्छ के जया .. चतुर्थ अध्याय; जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृ० १०६. २. उक्त श्लोक में अंकित सं० ५६८ को, डा. मिरोनो ( Mironow ) ने अपने सन् १९९१ में सिद्धर्षि पर लिखे गये निबन्ध में, गुप्त संवत् माना है। इससे वि० सं० ९७४ और ई. सन् ९१७ आता है और इस तरह इसकी उपमितिभवप्रपंचाकथा की रचना (सं० ९६२ ) से समकालिकता बैठती है। पर गुप्त संवत् का इतने परवर्ती काल तक प्रयोग भन्यत्र देखने को नहीं मिलता। इसलिए सिद्धर्षिकृत रचना मानना संदेहापक्ष है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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