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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास गुरुभ्राता विजयचन्द्रसूरि थे। तपागच्छ पट्टावली के अनुसार ग्रन्थकार के दादागुरु वस्तुपाल महामात्य के समकालीन थे। प्रस्तुत कृष्णचरित्र का रचनाकाल चौदहवीं शताब्दी का उत्तरार्ध आता है।
नव प्रतिवासुदेवों के चरित पर कोई पृथक् काव्य नहीं लिखे गये। इसी तरह ९ बलदेवों में राम और बलभद्र को छोड़ अन्य पर कोई काव्य नहीं लिखे गये। राम से सम्बंधित रचनाओं का वर्णन हम पहले कर चुके हैं। बलभद्रचरित्र' पर काव्य शुभवर्धनगणि का है जो प्रकाशित हो चुका है।
जैनधर्म के २४ तीर्थकर, १२ चक्रवर्ती, ९ अर्धचक्रवर्ती (नारायण), ९ प्रतिअर्धचक्रवर्ती (प्रतिनारायण ) और ९ बलदेव मिलाकर ६३ शलाका पुरुषों के अतिरिक्त २४ कामदेव ( अतिशय रूपवान ) हैं जिनमें से कुछ के चरित्र तो जैन कवियों को बड़े ही रोचक लगे हैं और जिन पर कई काव्य कृतियां लिखी गई हैं। ___ २४ कामदेव इस प्रकार हैं-बाहुबलि, प्रजापति, श्रीभद्र, दर्शनभद्र, प्रसेनचन्द्र, चन्द्रवर्ण, अग्निमुख, सनत्कुमार, वत्सराज, कनकप्रभ, मेघप्रभ, शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ, अरनाथ, विजयचन्द्र, श्रीचन्द्र, नलराजा, हनुमान, बलिराज, वसुदेव, प्रद्युम्न, नागकुमार, जीवन्धर और जम्बू। इनमें सनत्कुमार का चरित्र चक्रवर्तियों के प्रसंग में दिया गया है। शान्ति, कुन्थु और अर तीर्थंकरों के अन्तर्गत आते हैं। शेष में बाहुबलि, विजयचन्द्र, श्रीचन्द्र, नलराज, हनुमान, बलिराज, वसुदेव, प्रद्युम्न, नागकुमार, जीवन्धर और जम्बू के चरित्रों पर जैन कवियों ने अपनी बहुविध लेखनी चलाई है। यहाँ एतद्विषयक उपलब्ध काव्यों का परिचय प्रस्तुत करते हैं। __बाहबलि के जीवन-चरित्र को ऋषभदेव या भरतचक्रवर्ती के चरित्रों के साथ ही सम्बद्ध समझा जाता है और उनके साथ ही वर्णित किया जाता है पर 'बाहुबलिचरित्र' नाम से दो स्वतंत्र रचनाओं का उल्लेख मिलता है। प्रथम का
१. जिनरत्नकोश, पृ० २८२, हीरालाल हंसराज, जामनगर, १९२२. २. कामदेवों के जीवन की विशेषता यह है कि वह अनेकों भाकर्षणों से भरा
रहता है। इसमें मानव की दुर्बलताओं और उसके उत्थान-पतन का चित्रण दिखाया जाता है। सभी कामदेव चरमशरीरी (उसी जन्म से मोक्ष जानेवाले) होते हैं।
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