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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास प्रस्तुत काव्य मुनिभद्रसूरिकृत शान्तिनाथचरित महाकाव्य से पहले लिखा गया है। दोनों के कथानक और अवान्तर कथाओं में पूर्ण साम्य है। कथाओं का क्रम भी दोनों में एक-सा है। इसलिए मुनिभद्रसूरि की कृति का आधार प्रस्तुत ग्रन्थ ही है। किन्तु मूल कथा के विभाजन में दोनों मौलिक हैं। मुनिभद्रसरि ने कथा को १९ सर्गों में विभाजित किया है जबकि प्रस्तुत काव्य में कथानक का विभाजन ७ सर्गों में ही हुआ है। इसके प्रथम सर्ग में शान्तिनाथ के प्रारम्भ के तीन भवों का, द्वितीय में चतुर्थ और पंचम भव का, तृतीय सर्ग में षष्ठ और सप्तम भव का, चतुर्थ सर्ग में अष्टम और नवम भव का तथा पंचम में दशम और एकादश भव का वर्णन है । षष्ठ सर्ग में शान्तिनाथ के जन्म से दीक्षा तक एवं देशनाओं का और सप्तम में उनके मोक्षगमन का वर्णन है। विविध अवान्तर कथाओं के कारण कथानक के प्रवाह में शिथिलता-सी आ गई है। इसमें शान्तिनाथ, उनके पुत्र चक्रायुध और अशनिघोष तथा सुतारा ये चार पात्र ही प्रमुख हैं। प्रकृति-चित्रण और सौन्दर्य-चित्रण धार्मिकता से अनुप्राणित होने के कारण व्यापक रूप से स्थान नहीं पा सके हैं। जैनधर्म के सिद्धान्तों और नियमों का विवेचन अनेक स्थलों पर हुआ है। इस काव्य की भाषा सरल और प्रसाद गुण प्रधान है और भाव व्यक्त करने में सक्षम है । अलंकारों की योजना करने में कवि का विशेष आग्रह नहीं दिखाई पड़ता फिर भी कुछेक तो भाषाप्रवाह में आ गये हैं। शब्दालंकार में अनुप्रास और यमक का प्रयोग अधिक हुआ है और अर्थालंकार में उपमा, उत्प्रेक्षा और रूपक का। इसमें अनुष्टुभ् छन्द का प्रयोग हुआ है और सर्गान्त में छन्द-परिवर्तन हुआ है जिनमें शार्दूलविक्रीडित, आर्या, शिखरिणी, वसन्ततिलका तथा उपजाति छन्दों का प्रयोग है। कवि ने इस काव्य का रचना परिमाण ४८५५ श्लोक-प्रमाण बताया है। ग्रन्थकार व रचनाकाल-काव्य के अन्त में प्रशस्ति देकर कवि ने अपना परिचय दिया है। जिससे ज्ञात होता है कि मुनिदेवसूरि बृहद्गच्छीय थे। उन्होंने गुरुपरम्परा भी दी है । तदनुसार इस गच्छ में मुनिचन्द्र नामक विद्वान् सूरि हुए, १. वही, प्रशस्ति, श्लोक १८ : प्रत्यक्षरं च संख्यानात् पंचपंचाशताधिका । अस्मिन्मनुष्टुभामष्ठचत्वारिंशच्छतीत्येव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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