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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास श्री रत्नभूषण के आम्नाय का तथा उभय भाषा-चक्रवर्ती कहा है। अपने पिता का नाम हर्षदेव और माता का नाम वीरिका दिया है। इस ग्रन्थ की रचना कवि ने अपने अनुज ब्र० मंगलदास की सहायता से की थी। यह प्रसादपूर्ण चित्ताकर्षक रचना है। ____एक अन्य रचना सं० १५७८ में इन्द्रहंसगणिकृत है तथा दूसरी रत्ननन्दिगणिकृत और कुछ अज्ञात कर्तृक भी उपलब्ध हैं।'
चौदहवें तीर्थकर पर वासवसेनकृत अनन्तनाथपुराण नामक रचना का उल्लेखमात्र मिलता है ।
पन्द्रहवें तीर्थकर धर्मनाथ पर कुछ साधारण कोटि की तथा कुछ महत्त्वपूर्ण रचनाएँ हैं। सं० १२१६ में नेमिचन्द्रकृत धर्मनाथचरित मिलता है। सम्भवतः ये नेमिचन्द्र वही हैं जिन्होंने सं० १२१३ में प्राकृत में अनन्तनाथचरित की रचना की थी। दूसरी रचना महाकवि हरिचन्द्रकृत धर्मशर्माभ्युदय महाकाव्य है। इसका वर्णन हम शास्त्रीय महाकाव्यों के प्रसंग में करेंगे। तृतीय रचना भट्टारक सकलकीर्ति (१५वीं शती) कृत है ।
सोलहवे तीर्थकर शान्तिनाथ, तीर्थकर के अतिरिक्त पचम चक्रवर्ती तथा कामदेवों में से एक थे। उनका चरित जैन लेखकों को बड़ा रोचक लगा इसलिए उन पर अनेकों काव्य संस्कृत में लिखे गये हैं। यहाँ उनका परिचय दिया जाता है। शान्तिनाथपुराण :
इस चरित में १६ सर्ग हैं जिनमें कुल मिलाकर २५०० पद्य हैं। इसकी रचना शक सं० ९१० के लगभग हुई है। रचयिता असग कवि हैं जिनके चन्द्रप्रभचरित और महावीरचरित उपलब्ध हैं। इस काव्य के सातवें सर्ग में नासिक्य नगर के बाहर गजध्वज शैल का उल्लेख है जिसे गजपंथ तीर्थ के आसपास के क्षेत्र से पहचाना गया है। यह उक्त तीर्थ की प्राचीनता का द्योतक है।'
कवि असग की एक अन्यकृति लघुशान्तिपुराण भी मिलती है जिसमें १२ सर्ग हैं । यह लगता है कि कवि के १६ सर्गात्मक शान्तिपुराण का लघुरूप है।" 1. जिनरत्नकोश, पृ० ३५८. २. वही, पृ० ७. ३. वही, पृ० १८९. ४. सर्ग ७.९८; जैन साहित्य और इतिहास, पृ० ४३१. ५. जिनरत्नकोश, पृ० ३३६.
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