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________________ पौराणिक महाकाव्य ( इसमें बालक रोहक की अवान्तर कथा ), अति लोभ पर सोमशर्मा की कथा तथा वाणी से जीतने वाली सेठानी की कथा दी गई है। दूसरे शोलतपधर्माधिकार में शील के माहात्म्य पर शीलवती की कथा, तप-धर्म पर निर्भाग्य की कथा, जिनपृजा पर देवपाल की कथा, गुरुभक्ति पर श्रेष्ठिपुत्र मुग्ध की कथा, धर्मभक्ति पर अमरसिंह और पूर्णकलश की कथा तथा प्रमाद पर विष्णुशर्मा की कथा दी गई है। तीसरे भावाधिकार में भावधर्म के ऊपर चन्द्रोदर की कथा तथा विमलनाथ के पूर्वभव के जीव पद्मन राजा द्वारा पंचसमिति और त्रिगुप्ति पालन तथा पंचसमिति और त्रिगुप्ति में से प्रत्येक समिति के माहात्म्य पर एक-एक कथा दी गई है। ___इसके बाद पद्मसेन नृप ने २० स्थानक की आराधना से तीर्थकर प्रकृति बांधी और मरकर सहस्रार लोक गया। चतुर्थ सर्ग में सहस्रार स्वर्ग से व्युत होकर विमलनाथ का गर्भ में आना तथा जन्म-महोत्सव, व्रतग्रहण. केवल ज्ञान का वर्णन है। बीच में वरुण सेठ के चार पुत्रों की कथा तथा लोभाकर लोभानन्दी की कथाएँ आती हैं। पाँचवें सर्ग में श्रावकधर्म के उपदेश पर १२ व्रतों पर क्रमशः नृपशेखर, विमलकमल, सुरदत्त-कमलसेन, चन्द्र-सुरेन्द्रदत्त, देवदत्त जयदत्त, रोहिणेय और उसके पिता, स्वणशेखर-महेन्द्र, वीरसेन-पद्मावती, वानर-अरुण देव, वाकजंघ, मलयकेतु, शान्तिमती-पद्मलोचना की कथाएँ और सम्यक्त्व पर कुलध्वज की कथा दी गई है। पीछे गणधर की धर्मदेशना और विमलनाथ के निर्वाण गमन का वर्णन है। ग्रन्थकार तथा रचनाकाल-ग्रन्थ के अन्त में एक प्रशस्ति दी गई है जिससे ज्ञात होता है कि स्तंभतीर्थ ( खंभात ) में बृहत्तपागच्छ के रत्नसिंह के शिष्य ज्ञानसागर ने संवत् १५१७ में श्रावण कृष्ण पञ्चमी के दिन शाणराज सेठ की प्रार्थना पर इस ग्रन्थ को बनाया था। शाणराज सेठ ने रत्नसिंहसूरि के उपदेश से गिरनार पर्वत पर विमलनाथ का मन्दिर बनाया था और सम्भव है उनका चरित लिखने की उसने प्रार्थना भी की थी। इनकी दूसरी रचना शान्तिनाथचरित मिलती है। अन्य रचनाओं में ब्रह्मचारी कृष्णजिष्णु या कृष्णदास का विमलपुराण' १० सर्गात्मक मिलता है। इसमें २३६४ श्लोक हैं। ग्रन्थकर्ता ने अपने को भट्टारक १. मूल और पं० गजाधरलालकृत अनुवाद-जिनवाणी प्रचारक कार्यालय, कलकत्ता, सं० १९८१, श्रीलाल शास्त्रीकृत अनुवाद-भा. जै० सि. प्र. कलकत्ता तथा जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय, कलकत्ता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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