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________________ पौराणिक महाकान्य १.१ वासुपूज्यचरित: बारहवें तीर्थंकर पर संस्कृत में एक मात्र काव्य मिलता है जिसका विवेचन इस प्रकार है: इस काव्य में वासुपूज्य का चरित वर्णित है। यह ग्रन्थ यद्यपि चार ही सर्गों में विभक्त है पर ग्रन्थपरिमाण लगभग ५॥ हजार श्लोक प्रमाण है। इस काव्य के कथानक का आधार प्राचीन जैन पुराण ग्रन्थ हैं। यह आह्वादनाङ्कित काव्य है । सर्गों का नाम वर्ण्यविषय के आधार पर किया गया है। इसमें वासुपूज्य के भवान्तरों का विस्तार के साथ वर्णन किया गया है । समस्त कथानक में स्तोत्र और धर्मोपदेश फैले हुए हैं। इसमें अपने समय में रचित काव्यों की अपेक्षा अधिक अवान्तर कथाएँ दी गई हैं। पुण्याढ्य, हंसकेशव, रतिसार, विद्यापति, सनत्कुमार, शृंगारसुन्दरी, संवर, चन्द्रोदर, सूरचन्द्र, विक्रम, हंस, लक्ष्मीकुंज, नागिल, सिंह, धर्म, सुरसेन-महासेन, केशरी, सुमित्र, मित्रानन्द और सुमित्रा इन उन्नीस अवान्तर कथाओं की योजना इस काव्य में की गई है । इन कथाओं के भीतर भी उपकथाएँ दी गई हैं। कथाओं में अनेक चमत्कारी तत्वों का समावेश हुआ है। ___ चरित्रविकास की दृष्टि से इसमें तीर्थकर वासुपूज्य के चरित्र का पूर्ण विकास हुआ है। शेष चरित्र-विमलबोधि, वज्रनाभ, जया आदि कुछ समय के लिए ही हमारे समक्ष आते हैं। कवि के प्रकृति-चित्रण और सौन्दर्य-चित्रण प्रायः धार्मिकता से ओतप्रोत हैं और जो हैं वे कम ही हैं। धार्मिक और दार्शनिक तत्त्वों की चर्चा यत्रतत्र खूब की गई है। प्रस्तुत काव्य के अन्त के दो सर्गों में सामाजिक रीति-रिवाजों, परम्पराओं और विश्वासों का सुन्दर चित्रण हुआ है। वासुपूज्य के जन्म से लेकर दीक्षा के अवसर तक लौकिक रीतिरिवाजों का उल्लेख किया गया है। इस चरित की भाषा सरस और सरल संस्कृत है। इसके अनुष्टुप् छन्दों में मधुरता और लालित्य भरा हुआ है। कहीं-कहीं ८-१० श्लोकों के कुलकों में लम्बे-लम्बे समासों से युक्त पदावली का प्रयोग हुआ है। पर कवि ने प्रायः असमस्त शैली का प्रयोग ही किया है। इस चरित की भाषा में आलंकारिता १. जैन-धर्म प्रसारक सभा भावनगर, सं० १९६६; हीरालाल हंसराज, जाम_ नगर, १९२८-३०; जिनरत्नकोश, पृ० ३४८. २. वही, सर्ग ३. ३५०-४००, ५४०-५९६. ३. वही, सर्ग २. ९९१, ३. ४०६-४०९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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