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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास लम्बे अंशों को उद्धृत कर तथा उक्त तीर्थंकर का कुछ चरित्र देकर बनायी गई रचना है। रचयिता और रचनाकाल-इस ग्रन्थ के रचयिता अरुणमणि गृहस्थ प्रतीत होते हैं क्योंकि उन्होंने गृहस्थाश्रम के अपने पिता का नाम दिया है। उनने स्वयं को काष्ठासंघ, माथुरगच्छ, पुष्करगण का अनुयायी बताया है तथा श्रुतकीर्ति के शिष्य बुधराधव का अपने को शिष्य बताया है। इस ग्रन्थ को लेखक ने जहानाबाद के पार्श्वनाथ मन्दिर में बैठकर लिखा था। जहानाबाद बिहार प्रान्त में है, और इसकी हस्तलिखित प्रति आरा में मिली है। तीसरे तीर्थकर संभवनाथ पर संस्कृत में संभवनाथचरित्र का उल्लेख मिलता है। इसके रचयिता एक मेरुतुंगसूरि माने जाते हैं। इस काव्य की रचना सं० १४१३ में हुई थी। इनकी अन्य कृति कामदेवचरित्र (सं० १४०९) का उल्लेख मिलता है। मेरुतुंग नाम के तीन सूरि हुए हैं उनमें से इनका कोई विशेष परिचय नहीं मिलता। चौथे और पाँचवें तीर्थंकर पर भी संस्कृत रचनाओं का उल्लेख मिलता है । छठे तीर्थकर पद्मप्रभ पर भी अनेक संस्कृत काव्यों का उल्लेख मिलता है उसमें सर्व प्रथम सं० १२४८ में लिखित अपनी प्रवचनसारोद्धारटीका में सिद्धसेनसूरि ने स्वरचित पद्मप्रभचरित्र का उल्लेख किया है। सिद्धसेन चन्द्रगच्छसे संबंधित राजगच्छ के देवप्रभसूरि के शिष्य थे। भट्टारक युग में पद्मप्रभ के चरित पर संस्कृत में अनेक रचनाएँ लिखी गई थी । उनमें से भ० सकलकीर्ति कृत का उल्लेख मिलता है तथा भ० ज्ञानभूषण के शिष्य भ० शुभचन्द्र (१६-१७वीं शती) का ग्रन्थान २५०५ प्रमाण और भ० विद्याभूषण (सं० १६८०) तथा सोमदत्त ( सं० १६६०) के पद्मनाभपुराण ग्रन्थ-भण्डारों में मिलते हैं। सातवें तीर्थकर सुपार्श्व पर संस्कृत में कोई काव्य उपलब्ध नहीं है । १. जिनरत्नकोश, पृ० ४२२. २. वही, पृ० ८१. ३. वही, पृ० ४४६. ४. जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृ० ३३८; जिनरत्नकोश, पृ० २३४. ५. जिनरत्नकोश, पृ० २३३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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