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पौराणिक महाकाव्य
संस्कृत में तीर्थंकरों के जीवनचरित-संबंधी अनेक पृथक-पृथक काव्य मिले हैं, जिनका परिचय इस प्रकार है :
पद्मानन्द-महाकाव्य :
यह महाकाव्य आदि तीर्थंकर ऋषभदेव के चरित्र से सम्बद्ध है।' इसकी रचना पद्ममंत्री की प्रार्थना पर हुई थी इसलिए इसका नाम पद्मानन्द महाकाव्य रखा गया। इस काव्य का दूसरा नाम जिनेन्द्रचरित्र भी है। कवि की दूसरी कृति बालभारत की भांति यह भी 'वीराङ्क' चिह्न से विभूषित है। इसमें १९ सर्ग हैं और अनुष्टुभ् प्रमाण से श्लोक संख्या ६३८१ है। इसकी कथा का आधार 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र' है।
कवि ने परम्परागत कथानक में बिना कुछ परिवर्तन किये उसे श्रेष्ठ महाकाव्य के गुण से सम्पन्न बनाने में सफलता प्राप्त की है। प्रथम सर्ग प्रस्तावना के रूप में है, दूसरे से छठे सर्ग तक ऋषभदेव के १२ पूर्वभवों का वर्णन है, सातवें में जन्म, आठवें में बाललीला, यौवन, विवाह; नवम में सन्तानोत्पत्ति, दशम में राज्याभिषेक, ग्यारह-बारहवें में षटऋतु-क्रीडा और अन्त में दीक्षा-ग्रहण, तेरहवें में केवलज्ञान प्राप्ति, चौदहवें में समवशरण-देशना आदि, सोलह-सत्तरहअठारह में भरत-बाहुबलि-मरीचि के वृत्तान्त के साथ अन्त में ऋषभदेव एवं भरत के निर्वाण का वर्णन किया गया है। वास्तव में कथा १८वें सर्ग में ही समाप्त हो जाती है पर उन्नीसवे सर्ग में कवि ने प्रशस्ति के रूप में अपनी गुरुपरम्परा, काव्यरचना, उद्देश्य, प्रेरणादायक, पद्ममंत्री की वंशावली का विवरण दिया है। इस तरह आदि और अन्त के सग प्रस्तावना और प्रशस्ति रूप में है, शेष १७ सर्गों में कथा का वर्णन है।
इस काव्य में ऋषभदेव, भरत और बाहुबलि के चरित्र को ही विकसित रूप दिया गया है, शेष को नहीं । प्रकृति-चित्रण भी भव्यरूप से किया गया है। सौन्दर्य चित्रण में बाह्य की अपेक्षा आन्तरिक सौन्दर्य को अंकित करने की ओर विशेष ध्यान दिया गया है।
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१. गायकवाड़ ओरिएण्टल सिरीज बड़ौदा, १९३२; जिनरत्नकोश, पृ० २३४. विशेष परिचय डा. श्या० शं० दीक्षित लिखित '१३-१४वीं शताब्दी के जैन संस्कृत महाकाव्य' के अप्रकाशित अंश में दिया गया है।
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