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________________ ९२ जैन साहित्य का वृहद् इतिहास भरतचक्रवर्ती ने भगवान् ऋषभ के समवशरण में आगामी महापुरुषों के सम्बन्ध में उनका जीवन परिचय सुनते हुए पूछा-भगवन् , तीर्थकर कौन-कौन होंगे ? क्या हमारे वंश में भी कोई तीर्थकर होगा ? इस प्रश्न के उत्तर में भगवान् ऋषभ ने बतलाया कि इक्ष्वाकुवंश में मरीचि अन्तिम तीर्थकर का पद प्राप्त करेगा। भगवान् की इस भविष्यवाणी को अपने सम्बन्ध में सुनकर मरीचि प्रसन्नता से नाचने लगा और अहं भाव से विवेक तथा सम्यक्त्व की उपेक्षा कर तपभ्रष्ट हो मिथ्यामत का प्रचार करने लगा। इसके फलस्वरूप वह अनेक जन्मों में भटकता फिरा। इस रचना में भगवान् महावीर के २५ पूर्व-भवों का वर्णन रोचक पद्धति से हुआ है । भाषा सरल और प्रवाहमय है। भाषा को प्रभावक बनाने के लिए अलंकारों की योजना भी की गई है। रचयिता और रचनाकाल-इसके रचयिता बृहद्गच्छ के आचार्य नेमिचन्द्रसूरि हैं। इनका समय विक्रम की १२वीं शती माना जाता है । इनकी छोटी-बड़ी ५ रचनाएँ मिलती हैं-१. आख्यानमणिकोश ( मूलगाथा ५२), २. आत्मबोधकुलक अथवा धर्मोपदेशकुलक (गाथा २२), ३. उत्तराध्ययनवृत्ति (प्रमाण १२००० श्लोक), ४. रत्नचूड़कथा (प्रमाण ३०८१ श्लोक) और ५. महावीरचरियं (प्रमाण ३००० श्लोक)। प्रस्तुत रचना उनकी अन्तिम कृति है और इसका रचनाकाल सं० ११४१ है । इनकी अन्तिम तीन कृतियों में दिये गये प्रशस्ति पद्यों से इनकी गुरुपरम्परा का परिचय इस प्रकार मिलता है :-बृहद्दच्छ (प्रा० वड्ड, वडगच्छ) में देवसूरि के पट्टधर नेमिचन्द्रसूरि हुए, उनके पट्टधर उद्योतनसूरि के शिष्य आम्रदेवोपाध्याय के शिष्य नेमिचन्द्रसूरि हुए। रचयिता के दीक्षागुरु तो आम्रदेव उपाध्याय थे पर वे आनन्दसूरि के मुख्य पट्टधर के रूप में स्थापित हुए थे। पट्टधर होने के पहले इनकी सामान्य मुनि अवस्था ( वि० सं० ११२९ के पहले) का नाम देविंद ( देवेन्द्र) था। पीछे उनके देवेन्द्रगणि और नेमिचन्द्रसूरि दोनों नाम मिलते हैं। इनके सम्बन्ध में और विशेष जानकारी नहीं मिलती। महावीरचरित पर दो अन्य प्राकृत रचनाओं का उल्लेख मात्र मिलता है। वे हैं : मानदेवसूरि के शिष्य देवसूरि की तथा जिनवल्लभसूरि की । अन्तिम कृति ४४ गाथाओं में है। इसका दूसरा नाम दुरियरायसमीरस्तोत्र है। - १. जिनरत्नकोश. पृ० ३०६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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