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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास कातन्त्रव्याकरण: ... 'कातन्त्रव्याकरण' की भी एक परम्परा है। इसकी रचना में अनेक विशेषताएँ हैं और परिभाषाएँ भी पाणिनि से बहुत कुछ स्वतंत्र हैं। यह 'कातन्त्र व्याकरण' पूर्वार्ध और उत्तरार्ध इस प्रकार दो भागों में रचा गया है । तद्धित तक का भाग पूवार्ध और कृदन्त प्रकरणरूप भाग उत्तरार्ध है। पूर्वभाग के कर्ता सर्ववर्मन्-थे ऐसा विद्वानों का मन्तव्य है; वस्तुतः सर्ववर्मन् उसकी बृहद्वृत्ति के कर्ता थे। अनुश्रुतियों के अनुसार तो 'कातंत्र' की रचना महाराजा सातवाहन के समय में हुई थी। परंतु यह व्याकरण उससे भी प्राचीन है ऐसा युधिष्ठिर मीमांसक का मंतव्य है । 'कातन्त्र-वृत्ति' के कर्ता दुर्गसिंह के कथनानुसार कृदन्त भाग के कर्ता कात्यायन थे। सोमदेव के 'कथासरित्सागर' के अनुसार सर्ववर्मन् अजैन सिद्ध होते हैं परंतु भावसेन विद्य 'रूपमाला' में इनको जैन बताते हैं। इस विषय में शोध करना आवश्यक है। इस व्याकरण में.८८५ सूत्र हैं, कृदन्त के सूत्रों के साथ कुल १४०० सूत्र हैं । ग्रन्थ का प्रयोजन बताते हुए इस प्रकार कहा गया है : 'छान्दसः स्वल्पमतयः शब्दान्तररताश्च ये। ईश्वरा व्याधिनिरतास्तथाऽऽलस्ययुताश्च ये॥ वणिक्-सस्यादिसंसक्ता लोकयात्रादिषु स्थिताः । तेषां क्षिप्रप्रबोधार्थ........................ यह प्रतिज्ञा यथार्थ मालूम होती है। इतना छोटा, सरल और जल्दी से कंठस्थ हो सके ऐसा व्याकरण लोकप्रिय बने इसमें आश्चर्य नहीं है। बौद्ध साधुओं ने इसका खूब उपयोग किया, इससे इसका प्रचार भारत के बाहर भी हुआ। 'कातंत्र' का धातुपाठ तिब्बती भाषा में आज भी सुलभ है। आजकल इसका पठन-पाठन बंगाल तक ही सीमित है। इसका अपर नाम 'कलाप' और 'कौमार' भी है। 'अग्निपुराण' और 'गरुडपुराण' में इसे कुमार 1. Katantra must have been written during the close of the Andhras in '3rd century A. D.-Muthic Journal, Jan. 1928. २. 'कल्याण' हिन्दू संस्कृति अंक, पृ० ६५९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
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