SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ योजन लम्बा नगर बना हुआ था। अयोध्या भी सरयू-तट पर १२ योजन लंबी बनी लिखी है। नगर के मध्यभाग में राजगृह, संघगृहादि होते और दोनों पक्षों में अन्य भवन, गृहादि बनाये जाते थे। नगर का आकार, पंखों को फैलाकर उड़ते श्येन (बाज पक्षी ) या गीध पक्षी के समान होता था। महाराजा भोज के काल में भी वायुयान या विमान उड़ते थे। उनके काल में रचित एक ग्रंथ 'समराङ्गणसूत्रधार' में पारे से उड़ाये जानेवाले विमान का उल्लेख आता है: लघुदारुमयं महाविहङ्गं दृढसुश्लिष्टतनुं विधाय तस्य । उदरे रसयन्त्रमादधीत ज्वलनाधारमधोऽस्य चाति (ग्नि) पूर्णम् ।। ( समरा० यन्त्रविधान ३१. ९५) अर्थात् उसका शरीर अच्छी तरह जुड़ा हुआ और अतिदृढ़ होना चाहिए, उस विमान के उदर ( Belly ) में पारायन्त्र स्थित हो और उसे गर्म करने का आधार और अग्निपूर्ण (बारद, Combustible Powder) का प्रबन्ध उसमें हो। 'युक्तिकल्पतरु' में भी इसी प्रकार वर्णन है :--- 'व्योमयानं विमानं वा पूर्वमासीन्महीभुजाम्' (युक्तियान० ५०) इससे स्पष्ट होता है कि उस समय के राजाओं के पास व्योमयान तथा विमान होते थे। हमारी समझ में व्योमयान तथा विमान शब्दों से विमानों में भिन्नता प्रदर्शित की गई है। व्योमयान से विमान कहीं अधिक गति तथा वेगवान् थे। जिस प्रकार काल की विकराल गाल में देशों के विकसित नगर तथा अपरिमित विभूतियाँ भूमि में दब कर नष्ट हो जाती हैं उसी प्रकार भारत की समृद्धि तथा उसका संवृद्ध साहित्य भी विदेशी आतताइयों के विप्लवी आक्रमणों और उनकी बरबरता के कारण, उसके असंख्यों ग्रन्थों का लोप और विध्वंस हो गया। जिस प्रकार आजकल भारतीय राजकीय पुरातल विभाग भारत की दबी हुई भूमिगत सभ्यता को खोद-खोद कर प्रदर्शित कर रहा है, खेद है उतना ध्यान भारत के दबे हुए साहित्य को खोजने में नहीं देता। हमारी धारणा है अभी भी बहुत साहित्य लुप्त पड़ा है। कुछ काल पूर्व ही श्री वामनराय डा० कोकटनूर ने अमेरिकन केमिकल सोसाइटी के अधिवेशन में पढ़े एक निबन्ध में हस्तलिखित "अगस्त्य-संहिता" का नाम दिया और उसमें विमान के उड़ाने का वर्णन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy