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________________ व्याकरण जयसिंहसूरि के शिष्य नयचन्द्रसूरि ने 'हम्मीरमदमर्दन-महाकाव्य' की रचना की है। इन्होंने उसके सग १४, पद्य २३-२४ में उल्लेख किया है कि जयसिंहसूरि ने 'कुमारपालचरित्र' तथा भासर्वज्ञकृत 'न्यायसार' पर 'न्यायतात्पर्यदीपिका' नाम की वृत्ति की रचना की है। इन्होंने 'शार्ङ्गधरपद्धति' के रचयिता सारंग पंडित को शास्त्रार्थ में हराया था। प्रेमलाभव्याकरण : अञ्चलगच्छीय मुनि प्रेमलाभ ने इस व्याकरण की रचना वि० सं० १२८३ में की है। बुद्धिसागर की तरह रचयिता के नाम पर इस व्याकरण का नाम रख दिया गया है। यह 'सिद्धहेम' या किसी और व्याकरण के आधार पर नहीं है बल्कि स्वतंत्र रचना है। शब्दभूषणव्याकरण : तपागच्छीय आचार्य विजयराजसूरि के शिष्य दानविजय ने 'शब्दभूषण' नामक व्याकरण-ग्रंथ की रचना वि० सं० १७७० के आसपास में गुजरात में विख्यात शेख फते के पुत्र बड़ेमियाँ के लिये की थी। यह व्याकरण स्वतंत्र कृति है या 'सिद्धहेम' व्याकरण का रूपान्तर है, यह ज्ञात नहीं हो सका है। यह ग्रन्थ पद्य में ३०० श्लोक-प्रमाण है, ऐसा 'जैन ग्रन्थावली' (पृ० २९८ ) में निर्देश है। मुनि दानविजय ने अपने शिष्य दर्शनविजय के लिये 'पर्युषणाकल्प' पर 'दानदीपिका' नामक वृत्ति सं० १७५७ में रची थी। प्रयोगमुखव्याकरण: 'प्रयोगमुखव्याकरण' नामक ग्रंथ की ३४ पत्रों की प्रति जैसलमेर के भंडार में है । कर्ता का नाम ज्ञात नहीं है । सिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासन गुर्जरनरेश सिद्धराज जयसिंह की विनती से श्वेतांबर जैनाचार्य कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्रसूरि ने सिद्धराज के नाम के साथ अपना नाम जोड़ कर वि० सं० ११४५ के आस-पास में 'सिद्धहेमचन्द्र' नामक शब्दानुशासन की कुल सवा लाख श्लोकप्रमाण रचना की है। इस व्याकरण की छोटी-बड़ी वृत्तियाँ और उणादिपाठ, गणपाठ, धातुपाठ तथा लिंगानुशासन भी उन्होंने स्वयं लिखे हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
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