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________________ व्याकरण १५ समय वि० सं० ११८० बताया गया है।' इस श्रुतकीर्ति के किसी शिष्य ने यह प्रक्रिया ग्रन्थ बनाया । पद्य में 'राजहंस' का उल्लेख है । क्या यह नाम कर्ता का तो नहीं है? भगवद्वाग्वादिनी: 'कल्पसूत्र' की टीका में उपाध्याय विनयविजय और श्री लक्ष्मीवल्लभ ने निर्देश किया है कि 'भगवत्प्रणीत व्याकरण का नाम जैनेन्द्र हैं। इसके अलावा कुछ नहीं कहा है। उससे भी बढ़कर रत्नर्षि नामक किसी मुनि ने 'भगवद्वागवादिनी' नामक ग्रन्थ की रचना लगभग वि० सं० १७९७ में की है उसमें उन्होंने जैनेन्द्र-व्याकरण के कर्ता देवनंदि नहीं परन्तु साक्षात् भगवान् महावीर हैं ऐसा बताने का प्रयत्न जोरों से किया है। ___'भगवद्वाग्वादिनी' में जैनेन्द्र-व्याकरण का 'शब्दार्णवचन्द्रिकाकार' द्वारा मान्य किया हुआ सूत्रपाठ मात्र है और ८०० श्लोक-प्रमाण है। जैनेन्द्रव्याकरण-वृत्ति 'जैनेन्द्रव्याकरण' पर मेघविजय नामक किसी श्वेतांबर मुनि ने वृत्ति को रचना की है। ये हैमकौमुदी (चन्द्रप्रभा) व्याकरण के कर्ता ही हों तो इस वृत्ति को रचना १८वीं शताब्दी में हुई ऐसा मान सकते हैं । अनिट्कारिकावचूरिः 'जैनेन्द्रव्याकरण' की अनिटकारिका पर श्वेतांबर जैन मुनि विजयविमल ने १७वीं शताब्दी में 'अवचूरि' की रचना की है। निम्नोक्त आधुनिक विद्वानों ने भी 'जैनेन्द्रव्याकरण' पर सरल प्रक्रिया वृत्तियाँ बनाई हैं : १. 'सिस्टम्स भॉफ ग्रामर' पृ० ६७.। २. नाथूराम प्रेमी : 'जैन साहित्य और इतिहास' पृ० ११५. ३. नाथूराम प्रेमी : 'जैन साहित्य और इतिहास' परिशिष्ट, पृ० १२५. ४. इस वृत्ति-ग्रन्थ का उल्लेख 'राजस्थान के जैन शास्त्र-भंडारों की ग्रन्थसूची, __ भा० २ के पृ० २५७ में किया गया है। इसकी प्रति २६-११ पत्रों की मिली है। ५. इसकी हस्तलिखित प्रति छाणी के भण्डार में (सं० ५७८) है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
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