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________________ १४ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास शब्दार्णवचन्द्रिका ( जैनेन्द्रव्याकरणवृत्ति): दिगम्बर सोमदेव मुनि ने 'जैनेन्द्रव्याकरण' पर आधारित आचार्य गुणनंदि के 'शब्दार्णव' सूत्रपाठ पर 'शब्दार्णवचन्द्रिका' नाम की एक विस्तृत टीका की रचना की थी। ग्रन्थकार ने स्वयं बताया है : 'श्री सोमदेवयतिनिर्मितमादधाति या, नौः प्रतीतगुणनन्दितशब्दवारिधौ।' अर्थात् शब्दार्णव में प्रवेश करने के लिये नौका के समान यह टीका सोमदेव मुनि ने बनाई है। इसमें शाकटायन के प्रत्याहारसूत्र स्वीकार किये गये हैं। यही क्या, जैनेन्द्र का टीकासाहित्य शाकटायन की कृति से बहुत कुछ उपकृत हुआ पाया जाता है । शब्दार्णवप्रक्रिया (जैनेन्द्रव्याकरण-टीका): यह ग्रन्थ (वि० सं० ११८० ) 'जैनेन्द्रप्रक्रिया' नाम से छपा है और प्रकाशक ने उसके कर्ता का नाम गुणनन्दि बताया है परंतु यह ठीक नहीं है। यद्यपि अन्तिम पद्यों में गुणनन्दि का नाम है परन्तु यह तो उनकी प्रशंसात्मक स्तुतिस्वरूप है: 'राजन्मृगाधिराजो गुणनन्दी भुवि चिरं जीयात् ।' ऐसी आत्मप्रशंसा स्वयं कर्ता अपने लिये नहीं कर सकता। सोमदेव की 'शब्दार्णवचन्द्रिका' के आधार पर यह प्रक्रियाबद्ध टीका अन्थ है। तीसरे पद्य में श्रुतकीर्ति का नाम इस प्रकार उल्लिखित है : 'सोऽयं यः श्रुतकीर्तिदेवयतिपो भट्टारकोत्तंसकः। रंरम्यान्मम मानसे कविपतिः सदाजहंसश्चिरम् ॥' यह श्रुतकीर्ति 'पञ्चवस्तु'कार श्रुतकीर्ति से भिन्न होंगे, क्योंकि इसमें श्रुति कीर्ति को 'कविपति' बताया है। सम्भवतः श्रवण बेल्गोल के १०८३ शिलालेख में जिस श्रुतकीर्ति का उल्लेख है वही ये होंगे ऐसा अनुमान है। इस श्रुतकीर्ति का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
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