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________________ व्याकरण में की है। इस न्यास के अध्याय ४, पाद ३, सूत्र २११ तक की हस्तलिखित प्रतियां मिलती हैं, शेष ग्रन्थ अभी तक हस्तगत नहीं हुआ है। बंबई के 'सरस्वती-भवन' में इसकी दो अपूर्ण प्रतियां हैं। ग्रन्थकार ने सर्वप्रथम पूज्यपाद और अकलङ्क को नमस्कार करके न्यास-रचना का आरंभ किया है। वे अपने न्यास के विषय में इस प्रकार कहते हैं : शब्दानामनुशासनानि निखिलान्यध्यायताहनिशं, __ यो यः सारतरो विचारचतुरस्तल्लक्षणांशो गतः। तं स्वीकृत्य तिलोत्तमेव विदुषां चेतश्चमत्कारक सुव्यक्तरसमैः प्रसन्नवचनासः समारभ्यते ॥ ४ ॥ इस आरम्भ-वचन से ही उनके व्याकरणविषयक अध्ययन और पाण्डित्य का पता लग जाता है। वे अपने समय के महान् टीकाकार और दार्शनिक विद्वान् थे। यह उनके ग्रन्थों को देखते हुए मालूम होता है। न्यास में उन्होंने दार्शनिक शैली अपनाई है और विषय का विवेचन स्फुटरीति से किया है। आचार्य प्रभाचंद्र धाराधीश भोजदेव और जयसिंहदेव के राजकाल में विद्यमान थे ऐसा उनके ग्रन्थों की प्रशस्तियों और शिलालेख से भी स्पष्ट होता है।' एक जगह तो यह भी कहा है कि भोजदेव उनकी पूजा करता था । भोजदेव का समय वि० सं० १०७० से १११० माना जाता है, इससे इस न्यास-ग्रन्थ की रचना उसी के दरमियान में हुई हो ऐसा कह सकते हैं। पं० महेन्द्रकुमार ने न्यास-रचना का समय सन् ९८० से १०६५ बताया है । पञ्चवस्तु (जैनेन्द्रव्याकरण-वृत्ति): 'पञ्चवस्तु' टीका (वि० सं० ११४६ ) 'जैनेन्द्रव्याकरण' के प्राचीन सूत्रपाठ का प्रक्रिया-ग्रन्थ है। इसकी शैली सुबोध और सुंदर है । यह ३३०० श्लोक-प्रमाण है ।- व्याकरण के प्रारंभिक अभ्यासियों के लिये यह ग्रन्थ बड़ा उपयोगी है। १. श्रीधाराधिपभोजराजमुकुटप्रोताश्मरश्मिच्छटा छायाकुङ्कुमपङ्कलिप्तचरणाम्भोजातलक्ष्मीधवः । न्यायाब्जाकरमण्डने दिनमणिशब्दाब्जरोदोमणिः स्थेयात् पण्डितपुण्डरीकतरणिः श्रीमान् प्रभाचन्द्रमाः ॥ १७॥ श्री चतुर्मुखदेवानां शिष्योऽपृष्यः प्रवादिभिः । पण्डितश्रीप्रभाचन्द्रो रुद्रवादिगजाङ्कुशः ॥ १८ ॥ -शिलालेख-संग्रह भा० १, पृ० ११८. २. प्रमेयकमलमार्तण्ड-प्रस्तावना, पृ० ६७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
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