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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
१. सिंह की गरदन के बाल खूब घने होते हैं, रंग सुनहरी किन्तु पिछली ओर कुछ श्वेत होता है । वह शर की तरह खूब तेजी से दौड़ता है।
२. मृगेन्द्र की गति मंद और गंभीर होती है, उसकी आँखें सुनहरी और मूंछें खूब बड़ी होती हैं, उसके शरीर पर भाँति-भाँति के कई चकत्ते होते हैं ।
३. पंचास्य उछल-उछल कर चलता है, उसकी जीभ मुँह से बाहर लटकती ही रहती है, उसे नींद खूब आती है, जब कभी देखिए वह निद्रा में ही दिखाई देता है ।
४. हर्यक्ष को हर समय पसीना ही छूटता रहता है ।
५. केसरी का रंग लाल होता है जिसमें वारियाँ पड़ी हुई दीख पड़ती हैं । ६. हरि का शरीर बहुत छोटा होता है ।
अंत में ग्रन्थकार ने बताया है कि पशुओं का पालन करने से और उनकी 1. रक्षा करने से बड़ा पुण्य होता है । वे मनुष्य की सदा सहायता करते रहते हैं । गाय की रक्षा करने से पुण्य प्राप्त होता है ।
पुस्तक के दूसरे भाग में पक्षियों का वर्णन है। प्रारंभ में ही बताया गया है कि प्राणी को अपने कर्मानुसार ही अंडज योनि प्राप्त होती है। पक्षी बड़े चतुर होते हैं। अंडों को कब फोड़ना चाहिये, इस विषय में आश्चर्य होता है। पक्षी जंगल और घर का श्रृंगार है। कई प्रकार से मनुष्यों के सहायक होते हैं ।
उनका ज्ञान देखकर बड़ा पशुओं की तरह वे भी
ऋषियों ने बताया है कि जो पक्षियों को प्रेम से नहीं पालते और उनकी रक्षा नहीं करते वे इस पृथ्वी पर रहने योग्य नहीं हैं ।
इसके बाद हंस, चक्रवाक, सारस, गरुड, कौआ, बगुला, तोता, मोर, कबूतर वगैरह के कई प्रकार के भेदों का सुन्दर और रोचक वर्णन किया गया है । इस ग्रन्थ में कुल मिलाकर करीब २२५ पशु-पक्षियों का वर्णन है । तुरंगप्रबन्ध :
मंत्री दुर्लभराज ने 'तुरंगप्रबन्ध' नामक कृति की नहीं हुआ है । इसमें अश्वों के १२१५ के लगभग है ।
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रचना की है किन्तु यह गुणों का वर्णन होगा ।
ग्रन्थ अभी तक प्राप्त रचना - समय वि० सं० हस्तिपरीक्षा :
जैन गृहस्थ विद्वान् दुर्लभराज ( वि० सं० १२१५ के आसपास ) ने हस्तिपरीक्षा अपरनाम गजप्रबन्ध या गजपरीक्षा नामक ग्रन्थ की रचना १५०० श्लोकप्रमाण की है । जैन ग्रन्थावली, पृ० ३६१ में इसका उल्लेख है ।
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