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छब्बीसवाँ प्रकरण धातुविज्ञान
धातूत्पत्ति
. श्रीमालवंशीय ठक्कुर फेरू ने लगभग वि० सं० १३७५ में 'धातूत्पत्ति' नामक ग्रंथ की प्राकृत भाषा में रचना की है। इस ग्रन्थ में ५७ गाथाएँ हैं। इनमें पीतल, तांबा, सीसा, रांगा, कांसा, पारा, हिंगुलक, सिंदूर, कपूर, चन्दन, मृगनाभि आदि का विवेचन है।' धातुवादप्रकरण :
सोमराजा-रचित 'रत्नपरीक्षा' के अन्त में 'धातुवादप्रकरण' नामक २५ श्लोकों का परिशिष्ट प्राप्त होता है। इसमें तांबे से सोना बनाने की विधि का निरूपण किया गया है । इसके कर्ता का नाम ज्ञात नहीं है । भूगर्भप्रकाश :
श्रीमालवंशीय ठक्कुर फेरू ने करीब वि० सं० १३७५ में भूगर्भप्रकाश' नामक ग्रन्थ की प्राकृत भाषा में रचना की है। इस ग्रंथ में ताम्र, सुवर्ण, रजत, हिंगूल वगैरह बहुमूल्य द्रव्यवाली पृथ्वी का उपरिभाग कैसा होना चाहिये, किस रंग की मृत्तिका होनी चाहिये और कैसा स्वाद होने से कितने हाथ नीचे क्याक्या धातुएँ निकलेगी, इसका सविस्तर वर्णन देकर ग्रंथकार ने भारतीय भूगर्भशास्त्र के साहित्य में उल्लेखनीय अभिवृद्धि की है। यद्यपि प्राचीन साहित्यिक कृतियों में इस प्रकार के उल्लेख दृष्टिगोचर होते हैं परन्तु उनसे विस्तृत जानकारी नहीं होती। इस दृष्टि से यह ग्रंथ भारतीय साहित्य के इतिहास में विशेष महत्त्व रखता है।
१. यह ग्रन्थ 'रत्नपरीक्षादि-सप्तग्रन्थसंग्रह' में प्रकाशित है। २. यह भी 'रस्नपरीक्षादि-सप्तग्रन्थसंग्रह' में प्रकाशित है।
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