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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
तौल, मूल्य, धातुगत परिमाण, सिक्कों के नाम और स्थानसूचन आदि आवश्यक विषयों का मैंने इस ग्रन्थ में निरूपण किया है ।
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यद्यपि ' द्रव्यपरीक्षा' में बहुत प्राचीन मुद्राओं की सूचना नहीं है तथापि मध्यकालीन मुद्राओं का ज्ञान प्राप्त करने में इससे पर्याप्त सहायता मिलती है । ग्रंथ में लगभग २०० मुद्राओं का परिचय दिया हुआ है । उदाहरणार्थ पूतली, वीमली, कजानी, आदनी, रोणी, रुवाई, खुराजमी, वालिष्ट-इन मुद्राओं का नौल के साथ में वर्णन दिया हुआ है, लेकिन इनका सम्बन्ध किस राजवंश या देश से था यह जानना कठिन है । कई मुद्राओं के नाम राजवंशों से सम्बन्धित हैं, जैसे कुमरु - तिहुणगिरि ।
इस प्रकार गुर्जर देश से सम्बन्धित मुद्राओं में कुमरपुरी, अजयपुरी, भीमपुरी, लाखापुरी, अर्जुनपुरी, बिसलपुरी आदि नामवाली मुद्राएँ गुजरात के राजाओंकुमारपाल वि० सं० ११९९ से १२२९, अजयपाल सं० १२२९ से १२३२, भीमदेव, लाखा राणा, अर्जुनदेव सं० १३१८ से १३३१, विसलदेव सं० १३०२ से १३१८ – के नाम से प्रचलित मालूम होती हैं । प्रबन्ध ग्रन्थों में भीमप्रिय और. विप्रिय नामक सिक्कों का उल्लेख मिलता है । मालवीमुद्रा, चंदेरिकापुरमुद्रा, जालंधरीयमुद्रा, दिल्लिकासत्कमुद्रा, अश्वपतिमहानरेन्द्रपातसाही - अलाउद्दीनमुद्रा आदि कई मुद्राओं के नाम तौलमान के साथ बताये गये हैं । कुतुबुद्दीन बादशाह की स्वर्णमुद्रा, रूप्यमुद्रा और साहिमुद्रा का भी वर्णन किया गया है।
जिन मुद्राओं का इस ग्रंथ में उल्लेख है वैसी कई मुद्राएँ संग्रहालयों में संग्रहीत मिलती हैं, जैसे- लाहउरी, लगामी, समोसी, मसूदी, अब्दुली, कफुली, दीनार आदि । दीनार अलाउद्दीन का प्रधान सिक्का था ।
जिन मुद्राओं का इस ग्रंथ में वर्णन है वैसी कई मुद्राओं का उल्लेख प्रसंगवश साहित्यिक ग्रन्थों में आता है, जैसे- केशरी का उल्लेख हेमचन्द्रसूरिकृत 'याश्रयमहाकाव्य' में, जइथल का उल्लेख 'युगप्रधानाचार्यगुर्वावली' में, द्रम्म का उल्लेख द्वयाश्रयमहाकाव्य युगप्रधानाचार्यगुर्वावली आदि कई ग्रन्थों में आता है। दीनार का उल्लेख ' हरिवंशपुराण', 'प्रबन्धचिन्तामणि' आदि में आता है ।
१. यह कृति 'रत्नपरीक्षादि सप्तग्रंथसंग्रह' में प्रकाशित है । प्रकाशक हैराजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर, सन् १९६१.
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