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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास मणिकल्प :
आचार्य मानतुंगसूरि ने 'मणिकल्प' नामक ग्रंथ की रचना की है। इसमें १. रत्नपरीक्षा-वज्रपरीक्षा श्लोक २९, २. मुक्तापरीक्षा श्लोक ५६. ३. माणिक्यलक्षण श्लोक २०, ४. इन्द्रनीललक्षण श्लोक १६, ५. मरकतलक्षण श्लोक १२, ६. स्फटिकलक्षण श्लोक १६, ७. पुष्परागलक्षण श्लोक १, ८. वैडूर्यलक्षण श्लोक १, ९. गोगेदलक्षण श्लोक १, १०. प्रवाललक्षण श्लोक २, ११. रत्नपरीक्षा श्लोक ८, १२. माणिक्यकरण श्लोक ७, १३. मुक्ताकरण श्लोक ३, १४. मणिलक्षणपरीक्षा आदि श्लोक ६१--इस प्रकार कुल मिलाकर २२५ श्लोक हैं।' अन्त में कर्ता ने अपना नामनिर्देश इस प्रकार किया है :
श्रीमानतुङ्गस्य तथापि धर्म श्रीवीतरागस्य स एव वेत्ति । हीरकपरीक्षा:
किसी दिगंबर मुनि ने ९० श्लोकात्मक 'हीरकपरीक्षा' नामक ग्रंथ की रचना की है।
१. यह ग्रंथ हिंदी अनुवाद के साथ एस. के. कोटेचा, धूलिया से प्रकाशित
२. पिटर्सन की रिपोर्ट (नं० ४ ) में इस कृति का उल्लेख है ।
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