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रत्नशास्त्र
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लोग आज भी करते हैं। इसी तरह घट्ट काले माणिक के लिये 'चिप्पडिया' (देश्य ) शब्द का प्रयोग किया है । हीरे के लिये 'फार' शब्द का प्रयोग आज भी प्रचलित है। __ मालूम होता है मालवा हीरों के व्यापार के लिये प्रसिद्ध था, क्योंकि फेरू ने शुद्ध हीरे के लिये 'मालवी' शब्द का प्रयोग किया है। ___ पन्ने के लिये बहुत-सी नयी बातें कही हैं। ठक्कुर फेरू के समय में नई और पुरानी खानों के पन्नों में भेद हो गया हो ऐसा मालूम होता है, क्योंकि फेरू ने गरुडोद्गार, कीडउठी, वासवती, मूगउनी और धूलिमराई-ऐसे तत्कालीन प्रचलित नामों का प्रयोग किया है।' २. रत्नपरीक्षा:
सोम नामक किसी राजा ने 'रत्नपरीक्षा' नामक ग्रंथ की रचना की है ।
इसमें 'मौक्तिकपरीक्षा' के अंत में राजा के नाम का परिचायक श्लोक इस प्रकार है:
उत्पत्तिराकर-छाया-गुण-दोष-शुभाशुभम् ।
तोलनं मौल्यविन्यासःकथितः सोमभूभुजा ।। ये सोम राजा कौन थे, कब हुए और किस देश के थे, यह ज्ञात नहीं हुआ है। ये जैन थे या अजैन, यह भी ज्ञात नहीं हो सका है। इनकी शैली अन्य रत्नपरीक्षा आदि ग्रंथों के समान ही है। प्रस्तुत ग्रंथ में १. रत्नपरीक्षा श्लोक २२, २. मौक्तिकपरीक्षा श्लोक ४८, ३. माणिक्यपरीक्षा श्लोक १७, ४. इन्द्रनीलपरीक्षा श्लोक १५, ५. मरकतपरीक्षा श्लोक १२, ६. रत्नपरीक्षा श्लोक १७, ७. रत्नलक्षण श्लोक १५-इस प्रकार कुल मिलाकर १४६ अनष्टुप् श्लोक हैं। यह छोटा होने पर भी अतीव उपयोगी ग्रंथ है। इसमें रत्नों की उत्पत्ति, खान, छाया, गुण, दोष, शुभ, अशुभ, तौल और मूल्य का वर्णन किया गया है । समस्तरत्नपरीक्षा: - जैन ग्रंथावली, पृ० ३६३ में 'समस्तरत्नपरीक्षा' नामक कृति का उल्लेख है। इसके ६०० श्लोकप्रमाण होने का भी निर्देश है, कर्ता के नाम आदि का कुछ भी उल्लेख नहीं है। -१.. यह ग्रंथ 'रत्नपरीक्षादि-सप्तग्रंथसंग्रह' में प्रकाशित है। प्रकाशक है-राज.
स्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर, सन् १९६१. २. इसकी हस्तलिखित प्रति पालीताना के विजयमोहनसूरीश्वरजी . हस्तलिखित
शास्त्रसंग्रह में है।
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