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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
इस ग्रंथ पर खरतरगच्छीय लब्धिविजय के शिष्य महिमोदय मुनि ने एक टीका लिखी है । इन्होंने वि० सं० १७२२ में ज्योतिषरत्नाकर, पञ्चांगानयनविधि, गणितसाठस आदि ग्रंथ भी रचे हैं ।
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भुवनदीपक-टीका :
पंडित हरिभट्ट ने लगभग वि० सं० १५७० में 'भुवनदीपक' ग्रंथ की रचना की है।
इस 'भुवनदीपक' पर खरतरगच्छीय मुनि लक्ष्मीविजय ने वि० सं० १७६७ टीका रची है ।
चमत्कार चिन्तामणि- टीका :
राजर्षि भट्ट ने 'चमत्कारचिन्तामणि' ग्रंथ की रचना की है। इसमें मुहूत और जातक दोनों अंगों के विषय में उपयोगी बातों का वर्णन किया गया है।
इस 'चमत्कारचिन्तामणि' ग्रंथ पर खरतरगच्छीय मुनि पुण्यहर्ष के शिष्य अभयकुशल ने लगभग वि० सं० १७३७ में बालावबोधिनी - वृत्ति की रचना की है।
मुनि मतिसागर ने वि० सं० १८२७ में इस ग्रंथ पर 'टबा' की रचना की है।
होरामकरन्द-टीका :
अज्ञातकर्तृक 'होरामकरन्द' नामक ग्रंथ पर मुनि सुमतिहर्ष ने करीब वि० सं० १६७८ में टीका रची है ।
वसन्तर|जशाकुन टीका :
वसन्तराज नामक विद्वान् ने शकुनविषयक एक ग्रंथ की रचना की है। इसे 'शकुन - निर्णय' अथवा 'शकुनार्णव' कहते हैं ।
इस ग्रंथ पर उपाध्याय भानुचन्द्रगणि ने १७ वीं शती में टीका लिखी है ।'
१. यह वेंकटेश्वर प्रेस, बंबई से प्रकाशित है ।
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