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जैन साहित्य का वृहद् इतिहास पञ्चाङ्गानयनविधि:
उपर्युक्त महिमोदय मुनि ने 'पञ्चाङ्गानयनविधि' नामक ग्रंथ की रचना वि० सं० १७२२ के आस-पास की है। ग्रन्थ के नाम से ही विषय स्पष्ट है। इसमें अनेक सारणियाँ दी हैं जिससे पञ्चांग के गणित में अच्छी सहायता मिलती है । यह ग्रन्थ भी प्रकाशित नहीं हुआ है । तिथिसारणी:
पावचन्द्रगच्छीय वाघजी मुनि ने 'तिथिसारणी' नामक महत्त्वपूर्ण ज्योतिषग्रंथ की वि० सं० १७८३ में रचना की है। इसमें पञ्चांग बनाने की प्रक्रिया बताई गई है। यह ग्रन्थ 'मकरन्दसारणी' जैसा है। लीबडी के जैन ग्रन्थ भंडार में इसकी प्रति है। यशोराजीपद्धति :
मुनि यशस्वत्सागर, जिनको जसवंतसागर भी कहते थे, व्याकरण, दर्शन और ज्योतिष के धुरंधर विद्वान् थे। उन्होंने वि० सं० १७६२ में जन्मकुंडलीविषयक 'यशोराजीपद्धति' नामक व्यवहारोपयोगी ग्रन्थ बनाया है। इस ग्रन्थ के पूर्वार्ध में जन्मकुण्डली की रचना के नियमों पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है तथा उत्तरार्ध में जातकपद्धति के अनुसार संक्षिप्त फल बताया गया है। ग्रन्थ प्रकाशित नहीं हुआ है। त्रैलोक्यप्रकाश
आचार्य देवेन्द्रसूरि के शिष्य हेमप्रभसूरि ने 'त्रैलोक्यप्रकाश' नामक ग्रंथ की रचना वि० सं० १३०५ में की है । ग्रन्थकार ने इस ग्रन्थ का नाम 'त्रैलोक्यप्रकाश' क्यों रखा इसका स्पष्टीकरण करते हुए कहा है :
त्रीन् कालान् त्रिषु लोकेषु यस्माद् बुद्धिः प्रकाशते ।
तत् त्रैलोक्यप्रकाशाख्यं ध्यात्वा शास्त्रं प्रकाश्यते ।। यह ताजिक-विषयक चमत्कारी ग्रन्थ १२५० श्लोकात्मक है। कर्ता ने लग्नशान्त्र का महत्त्व बताते हुए ग्रंथ के प्रारंभ में ही कहा है :
म्लेच्छेषु विस्तृतं लग्नं कलिकालप्रभावतः।
प्रभुप्रसादमासाद्य जैने धर्मेऽवतिष्ठते ।। इस ग्रन्थ में ज्योतिष-योगों के शुभाशुभ फलों के विषय में विचार किया गया है और मानवजीवनसम्बन्धी अनेक विषयों का फलादेश बताया गया है ।
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