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संगीत
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में की है। इस ग्रन्थ में ९ अधिकरण हैं जिनमें नाद, ध्वनि, स्थायी, राग, वाद्य, अभिनय, ताल, प्रस्तार और आध्वयोग-इस प्रकार अनेक विषयों पर प्रकाश डाला गया है। इसमें प्रताप, दिगंबर और शंकर नामक ग्रंथकारों का उल्लेख है। भोज, सोमेश्वर और परमर्दी-इन तीन राजाओं के नाम भी उल्लिखित हैं।' संगीतोपनिषत्सारोद्धार :
आचार्य राजशेखरसूरि के शिष्य सुधाकलश ने वि० सं० १४०६ में 'संगीतोपनिषत्सारोद्धार' की रचना की है। यह ग्रंथ स्वयं सुधाकलश द्वारा सं० १३८० में रचित 'संगीतोपनिषत्' का साररूप है। इस ग्रंथ में छः अध्याय
और ६१० श्लोक हैं। प्रथम अध्याय में गीतप्रकाशन, दूसरे में प्रस्तारादिसोपाश्रय-तालप्रकाशन, तीसरे में गुण-स्वर-रागादिप्रकाशन, चौथे में चतुर्विध वाद्यप्रकाशन, पांचवें में नृत्यांग-उपांग-प्रत्यंगप्रकाशन, छठे में नृत्यपद्धतिप्रकाशन है।
यह कृति संगीतमकरंद और संगीतपारिजात से भी विशिष्टतर और अधिक महत्त्व की है।
इस ग्रंथ में नरचन्द्रसूरि का संगीतज्ञ के रूप में उल्लेख है। प्रशस्ति में अपनी 'संगीतोपनिषत्' रचना के वि. सं. १३८० में होने का उल्लेख है।
मलधारी अभयदेवसूरि की परंपरा में अमरचन्द्रसूरि हो गये हैं। वे संगीतशास्त्र में विशारद थे, ऐसा उल्लेख सुधाकलश मुनि ने किया है । संगीतोपनिषत् :
आचार्य राजशेखरसूरि के शिष्य सुधाकलश ने 'संगीतोपनिषत्' ग्रंथ की रचना वि. सं. १३८० में की, ऐसा उल्लेख ग्रन्थकार ने स्वयं सं० १४०६ में रचित अपने 'संगीतोपनिषत्सारोद्धार' नामक ग्रन्थ की प्रशस्ति में किया है। यह ग्रंथ बहुत बड़ा था जो अभी तक उपलब्ध नहीं हुआ है। ___ सुधाकलश ने 'एकाक्षरनाममाला' की भी रचना की है ।
१. विशेष परिचय के लिये देखिए-'जैन सिद्धांत भास्कर' भाग ९, अंक २
भोर भाग १०, अंक १०. २. यह ग्रंथ गायकवाड मोरियण्टल सिरीज, बड़ौदा से प्रकाशित हो गया है।
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