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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास वि० सं० १९९० में लिखित हस्तलिखित प्रति के ( जैसलमेर के भंडार से ) मिलने से उसके पहले कभी हुए हैं, यह निश्चित है । १४२ कवि स्वयंभू ने 'स्वयंभूच्छन्दस्' में जयदेव का उल्लेख किया है । वे 'पउमचरिय' के कर्ता स्वयंभू से अभिन्न हों तो सन् ७९१ ( वि० सं० ८४७ ) में विद्यमान थे, अतः जयदेव उसके पहले हुए, ऐसा माना जा सकता है संभवतः वि० सं० ५६२ में विद्यमान 'पञ्चसिद्धान्तिका ' के रचयिता वराहमिहिर को ये जयदेव परिचित होंगे । यदि यह ठीक है तो वे छठी शताब्दी के आस-पास या पूर्व हुए, ऐसा निर्णय हो सकता है । ईस्वी १०वीं शती के उत्तरार्ध में विद्यमान भट्ट हलायुध ने जयदेव के मत की आलोचना अपने 'पिङ्गल छन्दः सूत्र' की टीका ( पिं० १.१० ; ५.८ ) में की है। ई० १०वीं शताब्दी के 'नाट्यशास्त्र' के टीकाकार' अभिनवगुप्त ने जयदेव के इस ग्रन्थ का अवतरण लिया है। इससे वे ई० १० वीं शती से पूर्व हुए, ऐसा निर्णय कर सकते हैं । तात्पर्य यह है कि वे ई० ६ठी शताब्दी से ई० १०वीं शताब्दी के बीच में कभी हुए । सन् ९६६ में विद्यमान उत्पल, सन् १००० से पूर्व होनेवाले कन्नड भाषा के 'छन्दोऽम्बुधि' ग्रन्थ के कर्ता नागदेव, सन् १०७० में होनेवाले नमिसाधु और १२ वीं शताब्दी और उसके बाद में होनेवाले हेमचंद्र, त्रिविक्रम, अमरचंद्र, सुल्हण, गोपाल, कविदर्पणकार, नारायण, रामचंद्र वगैरह जैन- जैनेतर छन्दशास्त्रियों ने जयदेव से अवतरण लिये हैं, उनकी शैली का अनुसरण किया है या उनके मत की चर्चा की है। इससे जयदेव की प्रामाणिकता और लोकप्रियता का आभास मिलता है। इतना ही क्यों, हर्षट नामक जैनेतर विद्वान् ने 'जयदेवछन्दस्' पर वृत्ति की रचना की है जो जैन ग्रन्थों पर रचित विरल जैनेतर टीकाग्रन्थों में उल्लेखनीय है । · जयदेव ने अपना छन्दोग्रन्थ संस्कृत भाषा में पिंगल के आदर्श पर लिखा, ऐसा प्रतीत होता है । पिंगल की तरह जयदेव ने भी अपने ग्रन्थ के आठ अध्यायों में से प्रथम अध्याय में संज्ञाएँ, दूसरे-तीसरे में वैदिक छन्दों का निरूपण और चतुर्थ से लेकर अष्टम तक के अध्यायों में लौकिक छन्दों के लक्षण दिये हैं । १. देखिए – गायकवाड ग्रंथमाला में प्रकाशित टीका, पृ० २४४. For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
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