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जैन साहित्य का वृहद् इतिहास ग्रंथ के पृ० ४५ में 'उपजाति' के स्थान में 'इन्द्रमाला' नाम दिया गया हैं । पृ० ४६ में मुनि दमसागर, पृ० ५२ में श्री पाल्यकीतीश और स्वयंभूवेश तथा पृ० ५६ में कवि चारुकीर्ति के मतों के विषय में उल्लेख किया गया है ।
प्रथम अध्याय में संज्ञा, द्वितीय में सम-वृत्त, तृतीय में अर्ध-सम-वृत्त, चतुर्थ में विषम-वृत्त, पञ्चम में आर्या-जाति-मात्रासमक-जाति, छठे में मिश्र, सातवें में कर्णाटविषयभाषाजात्यधिकार ( जिसमें वैदिक छंदों के बजाय कन्नड़ भाषा के छंद निर्दिष्ट हैं ), आठवे में प्रस्तारादि-प्रत्यय से सम्बन्धित विवेचन है।
जयकीर्ति ने ऐसे बहुत से मात्रिक छंदों का उल्लेख किया है जो जयदेव के ग्रंथ में नहीं हैं। हाँ, विरहांक ने ऐसे छंदों का उल्लेख किया है, फिर भी संस्कृत के लक्षणकारों में उन छंदों के प्रथम उल्लेख का श्रेय जयकीर्ति को ही है। छन्दःशेखर:
'छन्दःशेखर' के कर्ता का नाम है राजशेखर । वे ठक्कुर दुद्दक और नागदेवी के पुत्र थे और ठक्कुर यश के पुत्र लाहर के पौत्र थे।
कहा जाता है कि यह 'छन्दःशेखर' ग्रन्थ भोजदेव को प्रिय था। इस ग्रन्थ की एक हस्तलिखित प्रति वि० सं० ११७९ की मिलती है ।
हेमचन्द्राचार्य ने इस ग्रन्थ का अपने 'छन्दोऽनुशासन' में उपयोग किया है। __ कहा जाता है कि जयशेखरसूरि नामक विद्वान् ने भी 'छन्दःशेखर' नामक छन्दोग्रंथ की रचना की थी लेकिन वह प्राप्य नहीं है। छन्दोनुशासन : - आचार्य हेमचन्द्रसूरि ने 'शब्दानुशासन' और 'काव्यानुशासन' की रचना करने के बाद 'छन्दोऽनुशासन' की रचना की है ।' ____ यह 'छन्दोऽनुशासन' आठ अध्यायों में विभक्त है और इसमें कुल मिलाकर.७६४ सूत्र हैं।
इसकी स्वोपज्ञ वृत्ति में सूचित किया गया है कि इसमें वैदिक छन्दों की चर्चा नहीं की गई है।
१. शब्दानुशासनविरचनान्तरं तत्फलभूतं काव्यमनुशिष्य तदङ्गभूतं 'छन्दोऽनु
शासन' मारिप्समानः शास्त्रकार इष्टाधिकृतदेवतानमस्कारपूर्वकमुपक्रमते ।
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