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________________ छन्द विचित्यां भाष्यतः' ऐसा निर्देश किया है अतएव इसका नाम 'छन्दोविचिति' भी है, यह मालूम होता है । सूत्रबद्ध इस ग्रंथ में छोटे-छोटे आठ अध्याय हैं और कुल मिलाकर २३० सूत्र हैं। यह ग्रंथ मुख्यतः वर्णवृत्त - विषयक है । इसमें वैदिक छन्दों का निरूपण नहीं किया गया है । इसमें दिये गये कई छन्दों के नाम आचार्य हेमचन्द्र के 'छन्दोऽनुशासन' के सिवाय दूसरे ग्रंथों में उपलब्ध नहीं होते। इस ग्रन्थ के उदाहरणों में जैनत्व का असर देखने में आता है और इसके टीकाकार जैन हैं अतः मूलकार के भी जैन होने की सम्भावना की जारही है । १३१ प्रथम अध्याय में विविध संज्ञाओं का निरूपण हैं । 'छन्दःशास्त्र' में पिंगल ने गणों के लिये म्, य्, र्, स्, त्, ज्, भ्, न्– ये आठ चिह्न बनाये हैं, जबकि इस ग्रन्थ में उनके बजाय क्रमशः क्, च्, त्, प्, श्, घ्, स्, ह्ये आठ व्यञ्जन और आ, ए, औ, ई, अ, उ, ऋ, इये आठ स्वरइस तरह दो प्रकार की संज्ञाओं की योजना की गई है । फिर, दो दीर्घ वर्णों के लिए य्, एक ह्रस्व और एक दीर्घ के लिये र्, एक दीर्घ और एक ह्रस्व के लिये लू, दो ह्रस्व वर्णों के लिये व्, एक दीर्घ वर्ण के लिये म् और एक ह्रस्व वर्ण के लिये न् संज्ञाओं का प्रयोग किया गया है । इसमें १, २, ३, ४ अंकों के लिये द, दा, दि, दी, इत्यादि का; कहीं-कहीं ण के प्रक्षेप के साथ, प्रयोग किया है, जैसे द – दण् = १, दा - दाण्= . = २ | दूसरे अध्याय में आर्या, गीति, आर्यागीति, गलितक और उपचित्रक वर्ग के अर्धसमवृत्तों के लक्षण दिये गये हैं । ----- तीसरे अध्याय में वैतालीय, मात्रावृत्तों के मात्रासमक वर्ग, गीत्यायी, विशिखा, कुलिक, नृत्यगति और नटचरण के लक्षण बताये हैं । आचार्य हेमचन्द्र के सिवाय नृत्यगति और नटचरण का निर्देश किसी छन्द-शास्त्री ने नहीं किया है। चतुर्थ अध्याय में विषमवृत्त के १. उद्गता, २ . दामावारा याने पदचतुरूर्ध्व और ३. अनुष्टुभवक्त्र का विचार किया है । Jain Education International पिंगल आदि छन्द-शास्त्री तीन प्रकार के भेदों का अनुष्टुभवर्ग के छन्द के प्रतिपादन के समय ही निर्देश करते हैं, जबकि प्रस्तुत ग्रन्थकार विषमवृत्तों का प्रारम्भ करते ही उसमें अनुष्टुभ्वक्त्र का अन्तर्भाव करते हैं। इससे ज्ञात होता है कि ग्रन्थकार का यह विभाग हेमचन्द्र से पुरस्कृत जैन परम्परा को ही ज्ञात है । पञ्चम- पष्ठ- सप्तम अध्यायों में वर्णवृत्तों का निरूपण है । इनका छः-छः अक्षर For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
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