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भलङ्कार
इनके रचे अन्य ग्रंथ इस प्रकार हैं: १. हैमनाममाला-बीजक, २. तर्कभाषावार्तिक (सं० १६६३ ), ३. स्याद्वादभाषा-वृत्तियुत (सं० १६६७), ४. कल्पसूत्र-टीका, ५. प्रश्नोत्तररत्नाकर ( सेनप्रश्न)। काव्यकल्पलतावृत्ति-टीका :
जिनरत्नकोश के पृ० ८९ में उपाध्याय यशोविजयजी ने ३२५० श्लोकपरिमाण एक टीका की आचार्य अमरचंद्रसूरि की 'काव्यकल्पलता-वृत्ति' पर रचना की है, ऐसा उल्लेख है।। काव्यकल्पलतावृत्ति-बालावबोध :
नेमिचंद्र भंडारी नामक विद्वान् ने 'काव्यकल्पलतावृत्ति' पर जूनी गुजराती में 'बालावबोध' की रचना की है। इन्होंने 'षष्टिशतक' प्रकरण भी बनाया है। काव्यकल्पलतावृत्ति-बालावबोध :.
खरतरगच्छीय मुनि मेरुसुन्दर ने वि० सं० १५३५ में 'काव्यकल्पलतावृत्ति' पर जूनी गुजराती में एक अन्य 'बालावबोध' की रचना की है। इन्होंने षष्टिशतक, विदग्धमुखमंडन, योगशास्त्र इत्यादि ग्रंथों पर बालावबोधों की रचना की है। अलङ्कारप्रबोध:
आचार्य अमरचन्द्रसूरि ने 'अलङ्कारप्रबोध' नामक ग्रंथ की रचना वि० सं० १२८० के आसपास में की है। इस ग्रंथ का उल्लेख आचार्य ने अपनी 'काव्यकल्पलता-वृत्ति' (पृ० ११६) में किया है। यह ग्रंथ अभी तक उपलब्ध नहीं हुआ है। काव्यानुशासन:
महाकवि वाग्भट ने 'काव्यानुशासन' नामक अलंकार-ग्रन्थ की रचना १४ वीं शताब्दी में की है। वे मेवाड़ देश में प्रसिद्ध जैन श्रेष्ठी नेमिकुमार के पुत्र और राहड के लघु बन्धु थे ।
यह ग्रन्थ पाँच अध्यायों में गद्य में सूत्रबद्ध है। प्रथम अध्याय में काव्य का प्रयोजन और हेतु, कवि समय, काव्य का लक्षण और गद्य आदि तीन १. इसकी प्रति महमदाबाद के विमलगच्छ के उपाश्रय में है, ऐसा सूचित
किया गया है।
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