________________
१०४
जैन साहित्य का वृहद् इतिहास 'प्रमाणनयतत्त्वालोक' नामक दार्शनिक ग्रंथ निर्माण किया है उसपर उन्होंने 'स्याद्वादरत्नाकर' नामक स्वोपज्ञ विस्तृत वृत्ति की रचना की है। उसमें उन्होंने इस ग्रन्थ के विषय में इस प्रकार उल्लेख किया है :
श्रीमदम्बाप्रसादसचिवप्रवरेण कल्पलतायां तत्सङ्केते कल्पपल्लवे च प्रपश्चितमस्तीति तत एवावसेयम् ।।
यह उल्लेख सूचित करता है कि 'कल्पलता' और उसकी दोनों वृत्तियाँइन तीनों ग्रन्थों के कर्ता महामात्य अम्बाप्रसाद थे। इन महामात्य के विषय में एक दानपत्र-लेख मिला है, जिसके आधार पर निर्णय हो सकता है कि वे गुजरनरेश सिद्धराज जयसिंह के महामात्य थे और कुमारपाल के समय में भी महामात्य के रूप में विद्यमान थे।'
वादी देवसूरि जैसे प्रौढ़ विद्वान् ने महामात्य अम्बाप्रसाद के ग्रंथों का उल्लेख किया है, इससे मालूम होता है कि अम्बाप्रसाद के इन ग्रन्थों का उन्होंने अवलोकन किया था तथा उनकी विद्वत्ता के प्रति सूरिजी का आदरभाव था। वादी देवसूरि के प्रति अम्बाप्रसाद को भी वैसा ही आदरभाव था, इसका संकेत 'प्रभावकचरित" के निम्नोक्त उल्लेख से होता है :
देवबोध नामक भागवत विद्वान् जब पाटन में आया तब उसने पाटन के विद्वानों को लक्ष्य करके एक श्लोक का अर्थ करने की चुनौती दी। जब छः महीने तक कोई विद्वान् उसका अर्थ नहीं बता सका तब महामात्य अम्बाप्रसाद ने सिद्धराज को वादी देवसूरि का नाम बताया कि वे इसका अर्थ बता सकते हैं। सिद्धराज ने सूरिजी को सादर आमन्त्रण भेजा और उन्होंने श्लोक की स्पष्ट व्याख्या कह सुनाई । उसे सुनकर सब आनन्दित हुए।
१. परिच्छेद १, सूत्र २, पृ० २९, प्रकाशक-आईतमतप्रभाकर, पूना, वीर
सं० २४५३. २. गुजरातना ऐतिहासिक शिलालेखो, लेख १४४. ३. गुजरातनो मध्यकालीन राजपूत इतिहास, पृ० ३३२. ४. वादिदेवसूरिचरित, श्लोक ६१ से ६६. ५. षण्मासान्ते तदा चाम्बप्रसादो भूपतेः पुरः । देवरिप्रभुं विज्ञराजं दर्शयति स्म च ॥ १५ ॥
-प्रभावक-चरित, वादिदेवसूरिचरित.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org