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अलङ्कार
१.
काव्यानुशासन-वृत्ति (विवेक):
विशिष्ट प्रकार के विद्वानों के लिए हेमचंद्र ने स्वयं इसी 'काव्यानुशासन' पर 'विवेक' नामक वृत्ति की रचना की है। इस वृत्तिरचना का हेतु बताते हुए हेमचंद्र ने इस प्रकार कहा है :
विवरीतुं कचिद् दृब्धं नवं संदर्भितुं कचित् ।
काव्यानुशासनस्यायं विवेकः प्रवितन्यते ॥ इस 'विवेक' वृत्ति में आचार्य ने ६२४ उदाहरण और २०१ प्रमाण दिये हैं। इसमें सभी विवादास्पद विषयों की चर्चा की गई है। अलकारचूडामणि-वृत्ति (काव्यानुशासन-वृत्ति):
उपाध्याय यशोविजयगणि ने आचार्य हेमचंद्रसूरि के 'काव्यानुशासन' पर 'अलङ्कारचूडामणि-वृत्ति' की रचना की है, ऐसा उनके 'प्रतिमाशतक' की खोपश वृत्ति में उल्लिखित 'अपश्चितं चैतदलकारचूडामणिवृत्तावस्माभिः' से मालूम पड़ता है। यह ग्रन्थ अभी तक प्राप्त नहीं हुआ है। काव्यानुशासन-वृत्ति
'काव्यानुशासन' पर आचार्य विजयलावण्यसूरि ने खोपज्ञ दोनों वृत्तियों के आधार पर एक नई वृत्ति की रचना की है, जिसका प्रथम भाग प्रकाशित हो चुका है। काव्यानुशासन-अवचूरिः
'काव्यानुशासन' पर आचार्य विनयलावण्यसूरि के प्रशिष्य आचार्य विजयसुशीलसूरि ने छोटी-सी 'अवचूरि' की रचना की है। कल्पलता: ___ 'कल्पलता' नामक साहित्यिक ग्रन्थ पर 'कल्पलतापल्लव' और 'कल्पपल्लव. शेष' नामक दो वृत्तियाँ लिखी गई, ऐसा 'कल्पपल्लवशेष' की हस्तलिखित प्रति से ज्ञात होता है। यह प्रति वि० सं० १२०५ में तालपत्र पर लिखी हुई जैसलमेर के हस्तलिखित ग्रन्थभण्डार से प्राप्त हुई है। अतः कल्पलता का रचनाकाल वि. सं० १२०५ से पूर्व मानना उचित है।
'कल्पलता' के रचयिता कौन थे, इसका 'कल्पपल्लवशेष' में उल्लेख न होने से रचनाकार के विषय में कुछ भी शात नहीं होता। वादी देवसूरि ने जो
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