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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास पं० हरगोविन्ददास त्रिकमचंद शेठ ने 'पाइयसद्दमहण्णव' (प्राकृतशब्दमहार्णव ) नामक प्राकृत-हिन्दी-शब्द-कोश रचा है जो प्रकाशित है ।
शतावधानी श्री रत्नचंद्रजी मुनि ने 'अर्धमागधी-डिक्शनरी' नाम से आगमों के प्राकृत शब्दों का चार भाषाओं में अर्थ देकर प्राकृत-कोशग्रंथ बनाया है जो प्रकाशित है।
आगमोद्धारक आचार्य आनन्दसागरसूरि के 'अल्पपरिचितसैद्धान्तिकशब्दकोश' के दो भाग प्रकाशित हुए हैं । तौरुष्कीनाममाला : __ सोममंत्री के पुत्र (जिनका नाम नहीं बताया गया है ) ने 'तौरुष्कीनाममाला' अपर नाम 'यवननाममाला' नामक संस्कृत-फारसी-कोशग्रंथ की रचना की है, जिसकी वि० सं० १७०६ में लिखित ६ पत्रों की एक प्रति अहमदाबाद के लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर के संग्रह में है। इसके अंत में इस प्रकार प्रशस्ति है :
राजर्षेदेशरक्षाकृत् गुमास्त्यु स च कथ्यते ।
हीमतिः सत्त्वमित्युक्ता यवनीनाममालिका ।। इति श्रीजैनधर्मीय श्रीसोममन्त्रीश्वरात्मजविरचिते यवनीभाषायां तौरुष्कीनाममाला समाप्ता। सं० १७०६ वर्षे शाके १५७२ वर्तमाने ज्येष्ठशुक्लाष्टमीघस्र श्रीसमालखानडेर के लिपिकृता महिमासमुद्रेण । . ___ मुस्लिम राजकाल में संस्कृत-फारसी के व्याकरण और कोशग्रंथों की जैनजैनेतरकृत बहुत-सी रचनाएँ मिलती हैं। बिहारी कृष्णदास, वेदांगराय और दो अज्ञात विद्वानों की व्याकरण-ग्रन्थों की रचनाएँ अहमदाबाद के लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर में हैं। प्रतापभट्टकृत 'यवननाममाला'
और अज्ञातकर्तृक एक फारसी-कोश की हस्तलिखित प्रतियाँ भी उपर्युक्त विद्यामंदिर के संग्रह में हैं। फारसी-कोश :
किसी अज्ञातनामा विद्वान् ने इस 'फारसी-कोश' की रचना की. है । इसकी २० वीं सदी में लिखी गई ६ पत्रों की हस्तलिखित प्रति अहमदाबाद के लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर में है ।
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