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कोका
एकाक्षरनाममाला :
'एकाक्षरनाममाला" में ५० पद्य हैं। विक्रम की १५ वीं शताब्दी में इसकी रचना सुधाकलश मुनि ने की है । कर्त्ता ने श्री वर्धमान तीर्थंकर को प्रणाम करके अन्तिम पद्य में अपना परिचय देते हुए अपने को मलधारिगच्छभर्त्ता गुरु राजशेखरसूरि का शिष्य बताया है ।
राजशेखरसूरि ने वि० सं० १४०५ में 'प्रबन्धकोश' ( चतुर्विंशतिप्रबन्ध ) नामक ग्रंथ की रचना की है ।
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उपाध्याय समय सुन्दरमणि ने सं० १६४९ में रचित 'अष्टलक्षार्थी-अर्थरत्नावली' में इस कोश का नामनिर्देश किया है और अवतरण दिया है ।
सुधाकलशगणिरचित 'संगीतोपनिषत्' ( सं० १३८० ) और उसका सारसारोद्धार (सं० १४०६ ) प्राप्त होता है जो सन् १९६१ में डा० उमाकान्त प्रेमानंद शाह द्वारा संपादित होकर गायकवाड ओरियन्टल सिरीज, १३३, में 'संगीतोपनिषत्सारोद्धार' नाम से प्रकाशित हुआ है ।
आधुनिक प्राकृत कोश :
आचार्य विजयराजेन्द्रसूरि ने साढ़े चार लाख श्लोक - प्रमाण 'अभिधानराजेन्द्र' नामक प्राकृत कोश ग्रंथ की रचना का प्रारम्भ वि० सं० १९४६ में सियाणा में किया था और सं० १९६० में सूरत में उसकी पूर्णाहुति की थी । यह कोश सात विशालकाय भागों में है । इसमें ६०००० प्राकृत शब्दों का मूल के साथ संस्कृत में अर्थ दिया है और उन शब्दों के मूल स्थान तथा अवतरण भी दिये हैं। कहीं-कहीं तो अवतरणों में पूरे ग्रंथ तक दे दिये गये हैं । कई अवतरण संस्कृत में भी हैं। आधुनिक पद्धति से इसकी संकलना हुई है ।
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इसी प्रकार इन्हीं विजयराजेन्द्रसूरि का 'शब्दाम्बुधिकोश' प्राकृत में है, जो अभी प्रकाशित नहीं हुआ है ।
१. यह 'एकाक्षरनाममाला' हेमचन्द्राचार्य की 'अभिधानचिन्तामणि' को अनेक आवृत्तियों के साथ परिशिष्टों में ( क्षेत्रचन्द्र लालभाई जैन पुस्तकोद्धार फण्ड, विजयकस्तूरसूरि संपादित 'अभिधानचिन्तामणि- कोश', पृ० २३६ २४० ) और ' भनेकार्थरत्नमन्जूषा' परिशिष्ट क ( देवचन्द्र लालभाई पुस्तकोद्वार फण्ड, ग्रन्थ ८१ ) में भी प्रकाशित है ।
यह कोश रतलाम से प्रकाशित हुआ है ।
२.
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