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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इस कोश पर स्वोपज्ञ टीका है, जिसमें अभिमानचिह्न, अवन्तिसुन्दरी, गोपाल, देवराज, द्रोण, धनपाल, पाटोदूखल, पादलिप्ताचार्य, राहुलक, शाम्ब, शीलाङ्क और सातवाहन के नाम दिये गये हैं । शिलोछकोश:
आचार्य हेमचन्द्रसूरि-रचित 'अभिधानचिन्तामणि' कोश के दूसरे परिशिष्ट के रूप में श्री जिनदेव मुनि ने 'शिलोंछ' नाम से १४० श्लोकों की रचना की है। कर्ता ने रचना का समय 'त्रि-वसु-इन्दु' (१) निर्देश किया है परंतु इसमें एक अंक का शब्द छूटता है। 'जिनरत्नकोश' पृ० ३८३ में वि० सं० १४३३ में इसकी रचना हुई, ऐसा निर्देश है। यह समय किस आधार से लिखा गया यह सूचित नहीं किया है। शिलोंछकोश छप गया है । शिलोब्छ-टीका :
इस 'शिलोञ्छ' पर ज्ञानविमलसूरि के शिष्य श्रीवल्लभ ने वि० सं० १६५४ में टीका की रचना की है । यह टीका छपी है। नामकोश:
खरतरगच्छीय बाचक रत्नसार के शिष्य सहजकीर्ति ने छः कांडों में लिंगनिर्णय के साथ 'नामकोश' या 'नाममाला' नामक कोश-ग्रंथ की रचना की है। इस कोश का आदि श्लोक इस प्रकार है :
स्मृत्वा सर्वज्ञमात्मानं सिद्धशब्दार्णवान् जिनान् ।
सलिङ्गनिर्णयं नामकोशं सिद्धं स्मृतिं नये ॥ अन्त का पद्य इस प्रकार है :
कृतशब्दार्णवैः साङ्गः श्रीसहजाादिकीर्तिभिः ।
सामान्यकाण्डोऽयं षष्ठः स्मृतिमार्गमनीयत ।। सहजकीर्ति ने 'शतदलकमलालंकृतलोद्रपुरीयपार्श्वनाथस्तुति' (संस्कृत) की रचना वि० सं० १६८३ में की है। यह कोश भी उसी समय के आसपास में रचा गया होगा। यह ग्रन्थ प्रकाशित नहीं हुआ है।
सहजकीर्ति के अन्य ग्रन्थ इस प्रकार हैं: १. शतदलकमलालंकृतलोद्रपुरीयपार्श्वनाथस्तुति ( सं० १६८३ ), २. महावीरस्तुति ( सं० १६८६),
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