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कोश
हुए, यह निश्चित है । इन्होंने 'हेम-नाममाला' का उल्लेख भी किया है । टीका के प्रारम्भ में अमरकीर्ति ने कल्याणकीर्ति को नमस्कार किया है। सं० १३५० में 'जिनयज्ञफलोदय' की रचना करनेवाले कल्याणकीर्ति से ये अभिन्न हो तो अमरकीर्ति ने इस 'भाप्य' की रचना निश्चित रूप से वि० सं० १३५० के आसपास में की है। निघण्टसमय:
' कवि धनञ्जयरचित 'निघण्टसमय' नामक रचना का उल्लेख 'जिनरत्नकोश', पृ० २१२ में है। यह कृति दो परिच्छेदात्मक बताई गई है, परन्तु ऐसी कोई कृति देखने में नहीं आई। संभवतः यह धनञ्जय की 'अनेकार्थनाममाला' हो । अनेकार्थ-नाममाला : ___ कवि धनञ्जय ने 'अनेकार्थनाममाला' की रचना की है। इसमें :६ पद्य है। विद्यार्थी को एक शब्द के अनेक अर्थों का ज्ञान हो सके, इस दृष्टि से यह छोटा-सा कोश बनाया है। यह कोश 'धनञ्जय नाममाला-सभाष्य' के साथ छपा है । अनेकार्थनाममाला-टीका:
कवि धनञ्जयकृत 'अनेकार्थनाममाला' पर किसी विद्वान् ने टीका रची है। यह टीका भी 'धनञ्जय-नाममाला-सभाष्य' के साथ छपी है। अभिधानचिन्तामणिनाममाला :
विद्वानों की मान्यता है कि आचार्य हेमचंद्र ने 'सिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासन' के बाद 'काव्यानुशासन' और उसके बाद 'अभिधानचिन्तामणिनाममाला" कोश की वि० १३वीं शताब्दी में रचना की है। स्वयं आचार्य हेमचन्द्र ने भी इस कोश के आरंभ में स्पष्ट कहा है कि शब्दानुशासन के समस्त अङ्गों की रचना प्रतिष्ठित हो जाने के बाद इस कोश-ग्रंथ की रचना की गई है। १. (क) महावीर जैन सभा, खंभात, शक-सं० १८१८ (मूल).
(ख) यशोविजय जैन ग्रंथमाला, भावनगर, वीर-सं० २४४६ (स्वोपज्ञ
__ वृत्तिसहित ). (ग) मुक्तिकमल जैन मोहनमाला, बड़ौदा ( रत्नप्रभा वृत्तिसहित ). (घ) देवचंद लालभाई जैन पुस्तकोद्धार फंड, सूरत, सन् १९४६ (मूल).
(ङ) नेमि-विज्ञान-ग्रंथमाला, अहमदाबाद (मूल-गुजराती अर्थ के साथ). २. प्रणिपत्याईतः सिद्धसाङ्गशब्दानुशासनः ।
रूढ-यौगिक-मिश्राणां नाम्नां मालां तनोम्यहम् ॥१॥
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