SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास धन्वन्तरि का 'निघण्टु' आदि के नाम प्रसिद्ध हैं। इनमें से कई कोश-ग्रंथ अप्राप्य हैं। उपलब्ध कोशों में अमरसिंह के 'अमर-कोश' ने अच्छी ख्याति प्राप्त की है। इसके बाद आचार्य हेमचंद्र आदि के कोशों का ठीक-ठीक प्रचार हुआ, ऐसा काव्यग्रंथों की टीकाओं से मालूम पड़ता है। प्रस्तुत प्रकरण में जैन ग्रंथकारों के रचे हुए कोश-ग्रंथों के विषय में विचार किया जा रहा है। . पाइयलच्छीनाममाला : 'पाइयलच्छीनाममाला' नामक एकमात्र उपलब्ध प्राकृत-कोश की रचना करनेवाले पं० धनपाल जैन गृहस्थ विद्वानों में अग्रणी हैं। इन्होंने अपनी छोटी बहन सुन्दरी के लिये इस कोश-ग्रंथ की रचना वि० सं० १०२९ में की है। इसमें २७९ गाथाएँ आर्या छंद में हैं। यह कोश एकार्थक शब्दों का बोध कराता है । इसमें ९९८ प्राकृत शब्दों के पर्याय दिये गये हैं। पं० धनपाल जन्म से ब्राह्मण थे। इन्होंने अपने छोटे भाई शोभन मुनि के उपदेश से जैन तत्त्वों का अध्ययन किया तथा जैन दर्शन में श्रद्धा उत्पन्न होने से जैनत्व अंगीकार किया। एक पक्के जैन की श्रद्धा से और महाकवि की हैसियत से इन्होंने कई ग्रंथों का प्रणयन किया है। धनपाल धाराधीश मुजराज की राजसभा के सम्मान्य विद्वद्रत्न थे। वे उनको 'सरस्वती' कहते थे। भोजराज ने इनको राजसभा में 'कूर्चालसरस्वती' और 'सिद्धसारस्वतकवीश्वर' की पदवियाँ देकर सम्मानित किया था। बाद में 'तिलकमञ्जरी' की रचना को बदलने के आदेश से तथा ग्रंथ को जला देने के कारण भोजराज के साथ उनका वैमनस्य हुआ। तब वे साचोर जाकर रहे । इसका निर्देशन उनके 'सत्यपुरीयमंडन-महावीरोत्साह' में है। आचार्य हेमचन्द्र ने 'अभिधानचिन्तामणि' कोश के प्रारंभ में 'व्युत्पत्तिधनपालतः' ऐसा उल्लेख कर धनपाल के कोशग्रंथ को प्रमाणभूत बताया १. (म) बुह्नर द्वारा संपादित होकर सन् १८७९ में प्रकाशित । (मा) भावनगर से गुलाबचंद लल्लुभाई द्वारा वि० सं० १९७३ में प्रकाशित। (इ) पं० बेचरदास द्वारा संशोधित होकर बंबई से प्रकाशित । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy