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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास स्वयंभू-व्याकरण :
दिगम्बर महाकवि स्वयंभू ने किसी अपभ्रंश व्याकरण की रचना की थी, यह उनके रचे हुए 'पउमचरिय' महाकाव्य के निम्नोक्त उल्लेख से मालूम होता है :
तावञ्चिय सच्छंदो भमइ अवभंस-मच्च-मायंगो।
जाव ण सयंभु-वायरण-अंकुसो पडइ ।। यह 'स्वयंभूव्याकरण' उपलब्ध नहीं है। इसका नाम क्या था यह भी मालूम नहीं। सिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासन-प्राकृतव्याकरण :
आचार्य हेमचन्द्रसूरि (सन् १०८८ से ११७२ ) ने व्याकरण, साहित्य, अलंकार, छन्द, कोश आदि कई शास्त्रों का निर्माण किया है। इनकी विविध विषयों के सर्वांगपूर्ण शास्त्रों के निर्माता के रूप में प्रसिद्धि है। इसीलिये तो इनके समस्त साहित्य का अभ्यास-परिशीलन करनेवाला सर्वशास्त्रवेत्ता होने की योग्यता प्राप्त कर सकता है। इनका 'प्राकृतव्याकरण' 'सिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासन' का आठवाँ अध्याय है। सिद्धराज को अर्पित करने से और हेमचन्द्ररचित होने से इसे 'सिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासन' कहा गया है। ___आचार्य हेमचन्द्रसूरि ने प्राचीन प्राकृत व्याकरणवाङमय का अवलोकन करके
और देशी धातु प्रयोगों का धात्वादेशों में संग्रह करके प्राकृत भाषाओं के अति विस्तृत और सर्वोत्कृष्ट व्याकरण की रचना की है। यह रचना अपने युग के
१. (क) डा० भार. पिशल-Hemachandra's Gramatik der
Prakrit Sprachen ( Siddha Hemachandra Adhyaya VIII, ) Halle 1877, and Theil ( uber Setzung and Erlauterungen), Halle, 1880 ( in Roman script ). (ख) कुमारपाल-चरित के परिशिष्ट के रूप में-B. S. P. S.
(XX), बंबई, सन् १९००. (ग) पूना, सन् १९२८, १९३६. (घ) दलीचंद पीतांबरदास, मीयागाम, वि० सं० १९६१ (गुजराती
अनुवादसहित). (ङ) हिन्दी व्याख्यासहित--जैन दिवाकर दिव्यज्योति कार्यालय,
ब्यावर, वि० सं० २०२०.
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