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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास चन्द्र का परिवार-एक चन्द्र के परिवार में (एक सूर्य के अतिरिक्त ) ८८ ग्रह, २८ नक्षत्र और ६६९७५०००००००००००००० तारे होते हैं :
अट्टासीति च गहा अट्ठावीसं तु हुंति नक्खत्ता । एगससोपरिवारो इत्तो ताराण वोच्छामि ।। छावद्रिं च सहस्सं णवयसदं पंचसत्तरि य होति । एयससीपरिवारो ताराणं कोडिकोडीओ ।।
धवला में उद्धृत' ये गाथाएँ चन्द्रप्रज्ञप्ति एवं सूर्यप्रज्ञप्ति में उपलब्ध होती हैं।
पृथिवियों की लम्बाई-चौड़ाई-सब पृथिवियों की लम्बाई सात राजू है। प्रथम पृथिवी एक राजू से कुछ अधिक चौड़ी है। द्वितीय पथिवी ११ राजू चौड़ी है। तृतीय पृथिवी की चौड़ाई २१ राजू है। चतुर्थ पृथिवी की चौड़ाई ३१ राजू है। पंचम पृथिवी ४३ राजू चौड़ी है। षष्ठ पृथिवी की चौड़ाई ५३ राजू है। सप्तम पृथिवी की चौड़ाई ६ राजू है। अष्टम पृथिवी एक राजू से कुछ अधिक चौड़ी है । प्रथम पृथिवी की मोटाई १८०००० योजन है। द्वितीय पृथिवी की मोटाई ३२००० योजन है । तृतीय पृथिवी २८००० योजन मोटी है । चतुर्थ पथिवी २४००० योजन मोटी है । पंचम पृथिवी की मोटाई २०००० योजन है। षष्ठ पृथिवी की मोटाई १६००० योजन है। सप्तम पृथिवी ८००० योजन मोटी है । अष्टम पृथिवी आठ योजन मोटी है :२
कालानुगम-कालानुगम का व्याख्यान प्रारम्भ करने के पूर्व धवलाकार ने ऋषभसेन ( भगवान् ऋषभदेव के प्रथम गणधर ) को नमस्कार किया है । तदनन्तर काल का नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव के भेद से विचार किया है। अपने वक्तव्य के समर्थन में आचार्य ने 'वुत्तं च पंचत्थिपाहुडे', 'जीवसमासाए वि उत्तं', 'तह आयारंगे वि वुत्तं', 'तह गिद्धपिछारियप्पयासिदतच्चत्थसुत्ते वि' इत्यादि वाक्यों का प्रयोग करते हुए पंचास्तिकायप्राभूत, जीवसमास, आचारांग ( मूलाचार ) एवं गृद्धपिच्छाचार्यप्रणीत तत्त्वार्थसूत्र के उद्धरण दिये हैं।" कालानुगम के ओघनिर्देश अर्थात् सामान्यकथन एवं आदेशनिर्देश
१. वही, पृ० १५२. ३. वही, पृ० ३१३. ५. वही, पृ० ३१५-३१७.
२. वही, पृ० २४८. ४. वही, पृ० ३१३-३१७.
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