SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राकथन ___ यह जैन साहित्य के बृहद् इतिहास का चतुर्थ भाग है । इसे पाठकों की सेवा में प्रस्तुत करते हुए अत्यधिक प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। इससे पूर्व प्रकाशित तीन भागों का विद्वत्समाज व सामान्य पाठकवृन्द ने हार्दिक स्वागत किया। प्रस्तुत भाग भी विद्वानों व अन्य पाठकों को उसी तरह पसन्द आएगा, ऐसा विश्वास है। पूर्व प्रकाशित तीनों भाग आगम-साहित्य से सम्बन्धित थे । प्रस्तुत भाग का सम्बन्ध आगमिक प्रकरणों एवं कर्म-साहित्य से है। जैन साहित्य के इस विभाग में सैकड़ों ग्रन्थों का समावेश होता है । कर्म-साहित्य से सम्बन्धित पृष्ठ मेरे लिखे हुए हैं तथा आगमिक प्रकरणों का परिचय जैन साहित्य के विशिष्ट विद्वान् प्रो० हीरालाल र० कापड़िया ने गुजराती में लिखा जिसका हिन्दी अनुवाद प्रो० शान्तिलाल म० वोरा ने किया है। मैं इन दोनों विद्वानों का आभारी हूँ। प्रस्तुत भाग के सम्पादन में भी पूज्य पं० दलसुखभाई का पूर्ण सहयोग प्राप्त हुआ है । इसके लिए मैं आपका अत्यन्त अनुगृहीत हूँ। ग्रंथ के मुद्रण के लिए संसार प्रेस का तथा प्रूफ-संशोधन आदि के लिए संस्थान के शोध-सहायक पं० कपिलदेव गिरि का आभार मानता हूँ। पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान वाराणसी--५ २४-१२-६८ मोहनलाल मेहता अध्यक्ष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy