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________________ कर्मप्राभृत १. सत्प्ररूपणा-सत्प्ररूपणा में दो प्रकार का कथन होता है : ओघ अर्थात् सामान्य की अपेक्षा से और आदेश अर्थात् विशेष की अपेक्षा से । ओघ की अपेक्षा से मिथ्यादृष्टि जीव हैं, सासादनसम्यग्दृष्टि जीव हैं, सम्यक्मिथ्यादृष्टि जीव हैं, असंयत-सम्यग्दृष्टि जीव हैं, संयतासंयत जीव हैं, प्रमत्तसंयत जीव है, अप्रमत्तसंयत जीव हैं, अपूर्वकरण-प्रविष्ट-शुद्धि-संयतों में उपशमक और क्षपक जीव हैं, अनिवृत्ति-बादर साम्परायिक-प्रविष्ट-शुद्धि-संयतों में उपशमक और क्षपक जीव हैं, सूक्ष्म-साम्परायिक-प्रविष्ट-शुद्धि-संयतों में उपशमक और क्षपक जीव हैं, उपशान्त-कषाय-वीतराग-छदमस्थ जीव हैं, क्षीण-कषाय-वीतरागछदमस्थ जीव हैं, सयोगकेवली अथवा सयोगिकेवली जीव हैं, अयोगकेवली अथवा अयोगिकेवली जीव हैं, सिद्ध जीव हैं : ओघेण अत्थि मिच्छाइट्ठी ॥९।। सासणसम्माइट्रो ।। १० ॥ सम्मामिच्छाइट्ठी ॥ ११ ॥ असंजदसम्माईट्ठी ॥ १२ ॥ संजदा-संजदा ॥ १३ ॥ पमत्तसंजदा ॥ १४ ॥ अप्पमत्तसंजदा ॥ १५ ॥ अपुवकरण-पविठ्ठ-सुद्ध-संजदेसु अत्थि उवसमा खवा ।। १६ ।। अणियटि-बादर-मांपराइयपविठ्ठ-सुद्धि-संजदेसु अस्थि उवसमा खवा ।।१७।। सुहुम-सांपराईय-पविट्ठ-सुद्धि-संजदेसु अत्थि उवसमा खवा ।। १८ ॥ उवसंत-कसाय-वीयराय-छदुमत्था ॥ १९ ॥ खीण-कसायवीयराय-छदुमत्था ॥ २० ॥ सजोगकेवली ।। २१ ।। अजोगकेवली ।। २२ ॥ सिद्धा चेदि ।। २३ ॥ ___ आदेश की अपेक्षा से गत्यनुवाद से नरकगति, तिर्यञ्चगति, मनुष्यगति, देवगति एवं सिद्धगति है : आदेसेण गदियाणुवादेण अत्थि णिरयगदी तिरिक्खगदी मणुस्सगदी देवगदी सिद्धगदी चेदि ॥ २४ ॥ नारकी प्रारंभ के चार गुणस्थानों में होते हैं । तिर्यञ्च प्रथम पाँच गुणस्थानों में होते हैं । मनुष्य चौदहों गुणस्थानों में पाये जाते हैं। देव प्रारंभिक चार गुणस्थानों में होते हैं । एकेन्द्रिय से लेकर असंज्ञी पंचेन्द्रिय तक के जीव शुद्ध तिर्यञ्च होते हैं। संज्ञी मिथ्यादृष्टि से लेकर संयतासंयत तक के तिर्यञ्च मिश्र हैं। मिथ्यादृष्टि से लेकर संयतासंयत तक के मनुष्य मिश्र हैं । इससे आगे शुद्ध मनुष्य हैं । इन्द्रिय की अपेक्षा से एकेन्द्रिय यावत् पंचेन्द्रिय तथा अनिन्द्रिय जीव हैं। एकेन्द्रिय दो प्रकार के हैं : बादर और सूक्ष्म। बादर दो प्रकार के हैं : पर्याप्त १. सू० ८. २. सू० २५-२८. ३. सू० २९-३२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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