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________________ २२ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास कर्मफल की तीव्रता-मन्दता : कर्मफल की तीव्रता और मन्दता का आधार तन्निमित्तक कषायों की तीव्रतामन्दता है। जो प्राणी जितना अधिक कषाय की तीव्रता से युक्त होगा उसके पापकर्म अर्थात् अशुभकर्म उतने ही प्रबल एवं पुण्यकर्म अर्थात् शुभकर्म उतने ही निर्बल होंगे। जो प्राणी जितना अधिक कषायमुक्त एवं विशुद्ध होगा उसके पुण्यकर्म उतने ही अधिक प्रबल एवं पापकर्म उतने ही अधिक दुर्बल होंगे।। कर्मों के प्रदेश : प्राणी अपनी कायिक आदि क्रियाओं द्वारा जितने कर्मप्रदेश अर्थात् कर्मपरमाणुओं का संग्रह करता है । वे विविध प्रकार के कर्मों में विभक्त होकर आत्मा के साथ बद्ध होते हैं । आयु कर्म को सबसे कम हिस्सा मिलता है । नाम कर्म को उससे कुछ अधिक हिस्सा मिलता है । गोत्र कर्म का हिस्सा भी नाम कर्म जितना ही होता है । उससे कुछ अधिक भाग ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय और अन्तराय इनमें से प्रत्येक कर्म को प्राप्त होता है। इन तीनों का भाग समान रहता है । इससे भी अधिक भाग मोहनीय कर्म के हिस्से में जाता है । सबसे अधिक भाग वेदनीय कर्म को मिलता है। इन प्रदेशों का पुनः उत्तरप्रकृतियों-उत्तरभेदों में विभाजन होता है। प्रत्येक प्रकार के बद्ध कर्म के प्रदेशों को न्यूनता-अधिकता का यही आधार है। कर्म की विविध अवस्थाएँ : जैन कर्मशास्त्र में कर्म की विविध अवस्थाओं का वर्णन मिलता है। ये अवस्थाएँ कर्म के बन्धन, परिवर्तन, सत्ता, उदय, क्षय आदि से सम्बन्धित हैं । इनका हम मोटे तौर पर ग्यारह भेदों में वर्गीकरण कर सकते हैं । उनके नाम इस प्रकार हैं : १. बन्धन, २. सत्ता, ३. उदय, ४. उदीरणा, ५. उद्वर्तना, ६. अपवर्तना, ७. संक्रमण, ८. उपशमन, ९. निधत्ति, १०. निकाचन, ११. अबाध । १. बन्धन-आत्मा के साथ कर्म-परमाणुओं का बंधना अर्थात् क्षीर-नीरवत् एकरूप हो जाना बन्धन कहलाता है । बन्धन के बाद ही अन्य अवस्थाएँ प्रारम्भ होती हैं । बन्धन चार प्रकार का होता है : प्रकृतिबन्ध , स्थितिबन्ध, अनुभागबंध अथवा रसबन्ध और प्रदेशबन्ध । इनका वर्णन पहले किया जा चुका है। Psychology. १. देखिए-आत्ममीमांसा, पृ० १२८-१३१; Jaina पृ० २५-९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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