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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
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१. वर्धमानविद्याकल्प :
अनेक अधिकारों में विभक्त यह कृति यशोदेवसूरि के शिष्य वि बुधचन्द्र के शिष्य और गणित-तिलक के वृत्तिकार सिंहतिलकसूरि ने लिखी है । इसके प्रारम्भ के तीन अधिकारों में अनुक्रम से ८९, ७७ और ३६ पद्य हैं । २. वर्धमानविद्याकल्प :
इस नाम की एक कृति यशोदेव ने तथा अन्य किसी ने भी लिखी है। मंत्रराजरहस्य :
८०० श्लोक-परिमाण यह कृति उपयुक्त सिंहतिलकसूरि ने 'गुण-त्रयत्रयोदश' अर्थात् वि. सं. १३३३ में लिखी है।
टोका-इस पर स्वयं कर्ता ने लोलावती नाम को वृत्ति लिखी है । विद्यानुशासन :
___ यह जिनसेन के शिष्य मल्लिषेण की कृति है जो चौबीस प्रकरणों में विभक्त है। इसमें ५,००० मंत्र हैं।
विद्यानुवाद :
यह विविध यंत्र, मंत्र एवं तंत्र को संग्रहात्मक कृति है । यह संग्रह सुकुमारसेन नामक किसी मुनि ने किया है। इसमें 'विज्जाणुवाय' पूर्व में से अवतरण दिये गये हैं। इस संग्रह में कहा है कि ऋषभ आदि चौबीस तीर्थंकरों की एक-एक शासनदेवी के सम्बन्ध में एक-एक कल्प की रचना की गई थी। सुकुमारसेन ने अम्बिकाकल्प, चक्रेश्वरीकल्प, ज्वालामालिनीकल्प और भैरवपद्मावतीकल्प-ये चार कल्प देखे थे ।४
१. यह कृति सिंहतिलकसूरि की हो वृत्ति के साथ सम्पादित होकर गायकवाड ___ ओरिएण्टल सिरीज़ में सन् १९३७ में प्रकाशित हुई है। २. देखिए-'अनेकान्त' वर्ष १, पृ० ४२९. ३. इसकी कई प्रतियाँ अजमेर और जयपुर के भण्डारों में हैं, ऐसा पं०
चन्द्रशेखर शास्त्री ने 'भैरव-पद्मावतीकल्प' को प्रस्तावना ( पृ० ७ ) में
निर्देश किया है। ४. यह परिचय उपयुक्त प्रस्तावना ( पृ० ८) के आधार पर दिया गया है ।
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