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________________ विधि-विधान, कल्प, मंत्र, तंत्र, पर्व और तीर्थं ३०३ कई द्वारों के उपविषय 'विषयानुकम' में दिखलाये गये हैं । उदाहरणार्थपांचवें द्वार के अन्तर्गत पंचमंगल-उपधान, चौबीसवें के अन्तर्गत दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, आचारांग आदि चार अंग, निशीथादि छेदसूत्र, छठे से ग्यारहवां अंग, औपपातिक आदि उपांग, प्रकीर्णक, महानिशीथ की विधि एवं योगविधान प्रकरण; चौतीसवें के अन्तर्गत ज्ञानातिचार, दर्शनातिचार और मूलगुण के सम्बन्ध में प्रायश्चित्त; पिण्डालोचनाविधान प्रकरण; उत्तरगुण, वीर्याचार और देशविरति के प्रायश्चित्त एवं आलोचनाग्रहणविधि प्रकरण तथा उपमा द्वार के प्रतिष्ठाविधि-संग्रह-गाथा, अधिवासनाधिकार, नन्द्यावर्तलेखन, जलानयन, कलशारोपण और ध्वजारोपण की विधि, प्रतिष्ठोपकरणसंग्रह, कूर्मप्रतिष्ठाविधि, प्रतिष्ठासंग्रहकाव्य, प्रतिष्ठाविधिगाथा और कहारयणकोस ( कथारत्नकोश ) में से ध्वजारोपणविधि । प्रस्तुत कृति में कई रचनाएं समग्ररूप से अथवा अंशतः संगृहीत की गई हैं। उदाहरणार्थ-उपधान की विधि नामक सातवें द्वार के निरूपण में मानदेवसूरिकृत ५४ गाथाओं का 'उवहाणविहि" नाम का प्रकरण, नवे द्वार में ५१ गाथाओं का 'उवहाणपइट्ठापंचासय',२ नन्दिरचनाविधि नामक पन्द्रहवें द्वार में ३६ गाथाओं का 'अरिहाणादिथोत्त, योगविधि नामक चौबीसवें द्वार के निरूपण में उत्तराध्ययन का १३ गाथाओं का चौथा अध्ययन,४ प्रतिष्ठाविधि नामक पैंतीसवें द्वार के निरूपण में कहारयणकोस' में से ५० गाथाओं का 'धयारोवणविहि" ( ध्वजारोपणविधि ) नाम का प्रकरण तथा चन्द्रसूरिकृत सात प्रतिष्ठासंग्रहकाव्य । ६८ गाथाओं का जो 'जोगविहाणपयरण' पृ० ५८ से ६२ पर. आता है वह स्वयं ग्रन्थकार की रचना होगी ऐसा अनुमान होता है । प्रतिक्रमक्रमविधि : सोमसुन्दरसूरि के शिष्य जयचन्द्रसूरि ने वि० सं० १५०६ में इसकी रचना की है। इसका यह नाम उपान्त्य पद्य में देखा जाता है। इसके प्रारम्भ में एक १. देखिए-पृ० १२-४. २. देखिए-पृ० १६-९. ३. देखिए-पृ० ३१-३. ४. देखिए-पृ० ४९-५०. ५. देखिए-पृ० १११-४. ६. देखिए-पृ० ११०-१. ७. यह कृति 'प्रतिक्रमणगर्भहेतु' नाम से श्री पानाचन्द वहालजी ने सन् १८९२ में छपाई है। इसका 'प्रतिक्रमणहेतु' नाम से गुजराती सार जैनधर्म प्रसारक. सभा ने सन् १९०५ में प्रकाशित किया था । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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