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________________ अनगार और सागार का आचार २६९ 'विजयजी ने इसे 'पंचसूत्री' कहा है। इसपर मुनि चन्द्रसूरि तथा किसी अज्ञात लेखक ने एक-एक अवचूरि लिखी है ।' मूलायार ( मूलाचार ) : इसे 'आचाराङ्ग' भी कहते हैं। इसके कर्ता वट्टकेर ने इसे बारह अध्यायों में बाँटा है । इसमें सामायिक आदि छः आवश्यकों का निरूपण है । यह एक संग्रहात्मक कृति है। श्री परमानन्द शास्त्री के मत से इसके कर्ता कुन्दकुन्दाचार्य से भिन्न हैं। इसके कर्ता वट्टकेर ने कुन्दकुन्दाचार्य के ग्रन्थों में से, आवश्यक की नियुक्ति में से, सन्मति प्रकरण में से तथा शिवार्यकृत आराधना में से गाथाएँ उद्धृत की हैं। टोकाएं-इसपर १२,५०० श्लोक-परिमाण की 'सर्वार्थसिद्धि' नाम की टीका वसुनन्दी ने लिखी है और वह प्रकाशित भी हो चुकी है। इस मूलाचार के ऊपर मेघचन्द्र ने भी टीका लिखी है । १. पंचनियंठी ( पंचनिर्ग्रन्थी ) : यह हरिभद्रसूरि की रचना मानी जाती है, जो अबतक अप्राप्य है । नाम से ज्ञात होता है कि इसमें पुलाक, बकुश, कुशील, निम्रन्थ और स्नातक-इन पाँच 'प्रकार के निर्ग्रन्थों का अधिकार होगा। २. पंचनियंठी (पंचनिग्रन्थी): यह नवांगीवृत्तिकार अभयदेवसूरि ने जैन महाराष्ट्री में १०७ पद्यों में लिखी है। इसे 'पंच निर्ग्रन्थीविचारसंग्रहणी' भी कहते हैं । यह वियाहपण्णत्ति (शतक १. प्रस्तुत कृति का गुजराती अनुवाद हुआ है और वह छपा भी है। हारि भद्रीय टीका के आधार पर मूल कृति का गुजराती विवेचन मुनि श्री भानुविजयजी ने किया है। यह विवेचन 'पंचसूत्र याने उच्च प्रकाशना पंथे' के नाम से 'विजयदानसूरीश्वर ग्रन्थमाला' में वि० सं० २००७ में छपा है । २. सर्वार्थसिद्धि टीका के साथ यह 'माणिकचन्द्र दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला' में छपा है। ३. देखिए-अनेकान्त, वर्ष २, पृ० ३१९-२४. ४. अज्ञातकर्तृक अवचूरि के साथ जैन आत्मानन्द सभा ने वि० सं० १९७४ में प्रकाशित की है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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