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________________ पंचम प्रकरण अनगार और सागार का आचार प्रशमरति : यह तत्त्वार्थ सूत्र आदि के कर्ता उमास्वाति की ३१३ 'श्लोकों की कृति ' है । संक्षिप्त, सुबोधक और मनमोहक यह कृति निम्नलिखित बाईस अधिकारों में विभक्त है : १. पीठबन्ध, २. कषाय, ३. राग आदि, ४. आठ कर्म, ५- ६. करणार्थं, ७. आठ मदस्थान, ८. आचार, ९. भावना, १०. धर्म, ११. कथा, १२. जीव, १३. उपयोग, १४. भाव, १५. षट्विध द्रव्य, १६. चरण, १७. शीलांग, १८. ध्यान, १९. क्षपकश्रेणी, २०. समुद्धात २१. योगनिरोध और २२. शिवगमन-विधान और फल । इसके १३५ वें श्लोक में मुनियों के वस्त्र एवं पात्र के विषय में निरूपण है । इसमें जीव आदि नौ तत्त्वों का निरूपण भी आता है । प्रस्तुत कृति तत्त्वार्थ सूत्र के कर्ता की है ऐसा सिद्धसेनगणी तथा हरिभद्रसूरि ने कहा है । १. यह मूल कृति तत्त्वार्थसूत्र इत्यादि के साथ 'बिब्लिओथिका इण्डिका' में सन् १९०४ में तथा एक अज्ञातकर्तुक टीका के साथ जैनधर्मं प्रसारक सभा की ओर से वि० सं० १९६६ में प्रकाशित की गई है । एक अन्य अज्ञातकर्तृक टीका और ए० बेलिनी ( A Ballini ) के इटालियन अनुवाद के साथ प्रस्तुत कृति Journal of the Italian Asiatic Society ( Vol. XXV & XXIX ) में छपी है । देवचन्द लालभाई जैन पुस्तकोद्धार संस्था ने हारिभद्रीय वृत्ति एवं अज्ञातकर्तृक अवचूर्णि के साथ यह कृति वि० सं० १९९६ में प्रकाशित की है । कर्पूरविजयजीकृत गुजराती अनुवाद आदि के साथ प्रस्तुत कृति जैनधर्म प्रसारक सभा ने वि० सं० १९८८ में छापी है | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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