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________________ २५९ योग और अध्यात्म योगविषयक अधोलिखित तेरह कृतियाँ भी उल्लेखनीय हैं : १. योगकल्पद्रुम-४१५ श्लोक-परिमाण की अज्ञातकर्तृक इस कृति में से एक उद्धरण पत्तनस्थ जैन भाण्डागारीय ग्रन्थसूची (भा० १, पृ० १८६) में दिया गया है। २. योगतरंगिणो-इस पर जिनदत्तसूरि ने टोका लिखी है। ३. योगदीपिका-इसके कर्ता आशाधर हैं । ४. योगभेवद्वात्रिंशिका-इसको रचना परमानन्द ने की है। ५. योगमार्ग-यह सोमदेव की कृति है । ६. योगरत्नाकर-यह जयकीति की रचना है । ७. योगलक्षणद्वात्रिशिका-इसके प्रणेता का नाम परमानन्द है । ८. योगविवरण-यह यादवसूरि की रचना है । ९. योगसंग्रहसार-इसके कर्ता जिनचंद्र हैं । इस नाम की एक अज्ञातकर्तृक कृति का उल्लेख पूर्व में किया गया है। १०. योगसंग्रहसारप्रक्रिया अथवा अध्यात्मपद्धति-नन्दीगुरु की इस कृति में से पत्तन-सूची (भा० १, पृ० ५६) में उद्धरण दिये गये हैं। ११. योगसार-यह गुरुदास की रचना है । १२. योगांग-४५०० श्लोक-परिमाण इन ग्रन्थ के प्रणेता शान्तरस हैं। इसमें योग के अंगों का निरूपण होगा। १३. योगामृत-यह वीरसेनदेव की कृति है । अध्यात्मकल्पद्रुम : इस पद्यात्मक कृति' के प्रणेता ‘सहस्रावधानी' मुनिसुन्दरसूरि हैं । यह निम्नलिखित सोलह अधिकारों में विभक्त है : १. यह ग्रन्थ चारित्रसंग्रह में सन् १८८४ में प्रकाशित हुआ है। यही ग्रन्थ धनविजयगणीकृत अधिरोहिणी नाम की इसकी टीका के आधार पर योजित टिप्पणों एवं जैन पारिभाषिक शब्दों के स्पष्टीकरणात्मक परिशिष्टों के साथ सन् १९०६ में निर्णयसागर मुद्रणालय की ओर से प्रकाशित हआ है। इसके पश्चात् यह मूल कृति धनविजयगणी को उपयुक्त टीका के साथ मनसुखभाई भगुभाई तथा जमनाभाई भगुभाई ने वि० सं०१९७१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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