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________________ २४४ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इस समग्र ग्रन्थ के दो विभाग किये जा सकते हैं । प्रकाश १ से ४ के प्रथम विभाग में मुख्यतः गृहस्थधर्म के लिए उपयोगी बातें आती हैं, जबकि शेष ५ से १२ प्रकाशों के द्वितीय भाग में प्राणायाम आदि की चर्चा आती है । द्वितीय प्रकाश में सम्यक्त्व एवं मिथ्यात्व तथा श्रावकों के बारह व्रतों में से प्रारम्भ के पाँच अणुव्रतों का विचार किया गया है । __ तृतीय प्रकाश में श्रावकों के अवशिष्ट सात व्रत, बारह व्रतों के अतिचार, महाश्रावक की दिनचर्या और श्रावक के मनोरथ-इस प्रकार विविध बातें आती हैं। चतुर्थ प्रकाश में आत्मा की सम्यक्त्व आदि रत्नत्रय के साथ एकता, बारह भावनाएँ, ध्यान के चार प्रकार और आसनों के बारे में कहा गया है । पाँचवें प्रकाश में प्राणायाम के प्रकारों और कालज्ञान का निरूपण है । छठे प्रकाश में पातंजल योगदर्शन में निर्दिष्ट परकायप्रवेश के ऊपर प्रकाश डाला गया है। सातवें प्रकाश में ध्याता, ध्येय, धारणा और ध्यान के विषयों की चर्चा आती है। आठवें से ग्यारहवें प्रकाशों में क्रमशः पदस्थ ध्यान, रूपस्थ ध्यान, रूपातीत ध्यान और शुक्ल ध्यान का स्वरूप समझाया गया है। बारहवें प्रकाश में दो बातें आती हैं : १. योग की सिद्धि और २. प्रस्तुत ग्रन्थ की रचना का हेतु । यहाँ राजयोग की सिफारिश की गई है। स्वोपज्ञ वृत्ति-स्वयं ग्रन्थकार ने यह वृत्ति लिखी है। इसके अन्त में दो श्लोक आते हैं। पहले में इसका 'वृत्ति' के रूप में और दूसरे में 'विवृति' के रूप में निर्देश है, जबकि प्रत्येक प्रकाश के अन्त में इसका 'विवरण' के नाम से उल्लेख मिलता है । १२००० श्लोक-परिमाण प्रस्तुत वृत्ति बीच-बीच में आनेवाले श्लोकों एवं विविध अवतरणों से समृद्ध है। प्रका० ३, श्लो० १३० की वृत्ति ( पत्र २४७ आ से पत्र २५० अ ) में प्रतिक्रमण की विधि से सम्बद्ध १. इसकी एक हस्तलिखित प्रति वि. सं. १२९२ की पाटन के एक भंडार में है । वि. सं. १२५० की एक ताड़पत्रीय प्रति भी है, ऐसा ज्ञात हुआ है। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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