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________________ योग और अध्यात्म २२९ योग के छः अंग सिंहसूरिगणी वादिक्षमाश्रमण ने 'द्वादशारनयचक्र'' के तीसरे आरे की न्यायागमानुसारिणी नाम की वृत्ति (वि० १, पृ० ३३२ ) में निम्नलिखित पद्य 'को योगः ?' के उल्लेख के साथ दिया है : प्रत्याहारस्तथा ध्यानं प्राणायामोऽथ धारणा। तर्कः समाधिरित्येष षडङ्गो योग उच्यते ।। यह श्लोक अमृतनाद उपनिषद् (६) में 'तर्कश्चैव समाधिश्च' इस प्रकार के तीसरे पाद के साथ तथा अत्रिस्मृति में दृष्टिगोचर होता है। इस उद्धरण का स्पष्टीकरण उपयुक्त वृत्ति ( पृ० ३३२ ) में आता है । उसमें प्राणायाम के रेचक, कुम्भक और पूरक इन तीन भेदों का निर्देश करके इन तीनों का स्वरूप संक्षेप में समझाया है। तर्क के स्पष्टीकरण में पल्यंक, स्वस्तिक और वीरासन इन तीन आसनों का उल्लेख आता है। अन्त में इस षडंग योग द्वारा सर्वत्र पृथ्वी इत्यादि मूर्तिरूप ईश्वर का दर्शन कर भावित आत्मा उसे अपनी आत्मा में किस प्रकार देखता है इसका निर्देश किया गया है । इस प्रकार योग के छः अंगों का उल्लेख करने वाले उपर्युक्त क्षमाश्रमण ने मध्यस्थलक्षी हरिभद्रसूरि की अथवा अपने पुरोगामी सिद्धसेनगणी की भाँति अपनी इस वृत्ति में बौद्ध तार्किक धर्मकीर्ति का अथवा उनकी किसी कृति का उल्लेख नहीं किया। फलतः वे सिद्धसेनगणी से पहले हुए हैं ऐसा माना जाता है। योगनिर्णय : गुणग्राही और सत्यान्वेषक श्री हरिभद्रसूरि ने योगदृष्टिसमुच्चय (श्लो० १) को स्वोपज्ञ वृत्ति ( पत्र २ अ) में उत्तराध्ययन के साथ 'योगनिर्णय' का योगविषयक ग्रन्थ के रूप में उल्लेख किया है । यह ग्रन्थ आज तक उपलब्ध नहीं हुआ। उसमें योगदृष्टिसमुच्चय में निर्दिष्ट इच्छा-योग, शास्त्र-योग और सामर्थ्ययोग का निरूपण होगा, मित्रा आदि आठ दृष्टियों का या पांच समिति और १. इसका प्रकाशन चार आरा तक के भाष्य तथा उसकी टीका आदि के साथ आत्मानन्द सभा ने इस वर्ष ( १९६७ ) भावनगर से किया है । इसका सम्पादन टिप्पण आदि के साथ मुनि श्री जम्बूविजयजी ने किया है। २. इनका परिचय करानेवाली अपनी कृतियों का निर्देश मैंने आगे किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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