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________________ १६५ आगमसार और द्रव्यानुयोग जीवसमास : इस ग्रन्थ के कर्ता का नाम अज्ञात है, किन्तु वह पूर्वधर थे ऐसा माना जाता है । जैन महाराष्ट्री में रचित इस कृति में २८६ आर्या छन्द हैं । इनके अतिरिक्त कोई-कोई गाथा प्रक्षिप्त भी है । ऐसी एक गाथा का निर्देश मलधारी हेमचन्द्रसूरि ने इसकी टीका के अन्त ( पत्र ३०१ ) में किया है और उसकी व्याख्या भी की है, यद्यपि ऐसा करते समय उन्होंने सूचित किया है कि पूर्व टीका में इसकी व्याख्या उपलब्ध नहीं होती। 'वलभी' वाचना का अनुसरण करनेवाली इस कृति का आरम्भ चौबीस तीर्थंकरों के नमस्कार से होता है । प्रारम्भ की गाथा में अनन्त जीवों के चौदह समास यानी संक्षेप के वर्णन की प्रतिज्ञा की है। चार निक्षेप; छः तथा आठ अनुयोगद्वार; गति, इन्द्रिय इत्यादि चौदह मार्गणाओं द्वारा जीवसमासों का बोध, आहार, भव्यत्व इत्यादि की अपेक्षा से जीवों के प्रकार; मिथ्यात्व आदि चौदह गुणस्थान; नारक आदि के प्रकार; पृथ्वीकाय आदि के भेद; धर्मास्तिकाय आदि अजीव के भेद; अंगुल के तीन प्रकार; काल के समय, आवलिका इत्यादि भेदों से लेकर पल्योपम आदि का स्वरूप; संख्या के भेदप्रभेद; ज्ञान, दर्शन, नय और चारित्र के प्रकार; नारक आदि जीवों का मान; समुद्धात; नारक आदि का आयुष्य और उसका विरह-काल तथा गति, वेद इत्यादि की अपेक्षा से जीवों का और प्रदेश की अपेक्षा से अजीव पदार्थों का अल्पबहुत्व-इन विषयों का निरूपण इसमें आता है। गाथा ३०, ३६, ६५ इत्यादि में पृथ्वीकाय आदि के जो प्रकार कहे हैं वे उपलब्ध आगमों में दिखाई नहीं पड़ते । टीका-जीवसमास पर विशेषावश्यकभाष्य इत्यादि के टीकाकार मलधारी हेमचन्द्रसूरि ने वि० सं० ११६४ में या उसके आसपास ६६२७ श्लोक-परिमाण वृत्ति लिखी है। इसके पहले एक वृत्ति और एक टीका लिखी गई थी ऐसा ४७वीं तथा १५८वीं गाथा पर की इस वृत्ति के उल्लेख से ज्ञात होता है, परन्तु १. यह मलधारी हेमचन्द्र की वृत्ति के साथ 'आगमोदय समिति' की ओर से १९२७ में प्रकाशित हुई है। इसके प्रारम्भ में लघु एवं बृहद् विषयानुक्रम भी दिया गया है। २. कुल इक्कीस भेद । ३. देखिए-मुद्रित आवृत्ति का उपोद्धात, पत्र ११. ४. देखिए- अनुक्रम से पत्र ३३ और १५५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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