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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
ज्ञानचन्द्र मल्लिषेण और प्रभाचन्द्र' ने भी संस्कृत में टीकाएँ लिखी हैं । इनके अलावा अज्ञातकर्तृक दो संस्कृत टीकाएँ भी हैं, जिनमें से एक का नाम 'तात्पर्यवृत्ति' है ऐसा उल्लेख जिनरत्नकोश ( विभाग १, पृ० २३१ ) में है ।
मूल कृति पर हेमराज पाण्डे ने हिन्दी में बालावबोध लिखा है ।
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आठ पाहुड :
कई लोगों का मानना है कि कुन्दकुन्द ने ८४ पाहुड लिखे थे । सच मान लें, तो भी इन सब पाहुडों के नाम अब तक उपलब्ध नहीं यहाँ तो मैं जैन शौरसेनी में रचित पद्यात्मक आठ पाहुडों के विषय
कहूँगा । इन पाहुडों के नाम हैं : १. दंसण पाहुड, २. चारित पाहुड, ३. सुतपाहुड, ४. बोध - पाहुड, ५. भाव पाहुड, ६. मोक्ख पाहुड, ७. लिंग पाहुड, ८. सील - पाहुड ।"
१. दंसणपाहुड ( दर्शनप्राभृत ) – इसमें ३६ आर्या छन्द हैं । वर्धमान स्वामी को अर्थात् महावीर स्वामी को नमस्कार दरके 'सम्यक्त्व का मार्ग संक्षेप में कहूँगा' इस प्रकार की प्रतिज्ञा के साथ इस कृति का प्रारम्भ किया गया है । इसमें सम्यक्त्व को धर्म का मूल कहा है । सम्यक्त्व के बिना निर्वाण की अप्राप्ति और भवभ्रमण होता है, फिर भले ही अनेक शास्त्रों का अभ्यास किया गया हो अथवा उग्र तपश्चर्या की गई हो - ऐसा कहकर सम्यक्त्व का महत्त्व
यह बात
हुए हैं । *
ही कुछ
विभागों में विभक्त है । इस तरह इस टीका के अनुसार कुल १८१ गाथाएँ होती हैं । जयसेन की इस टीका का उल्लेख पयवणसार और समयसार की उनकी टीकाओं में है । इन तीनों में से पंचत्थिकायसंगह की टीका में सबसे अधिक उद्धरण आते हैं ।
१. इनकी टीका का नाम 'प्रदीप' है ।
२ कई लोगों के मत से देवजित ने भी संस्कृत में टीका लिखी है ।
३. बालचन्द्र ने कन्नड़ में टीका लिखी है ।
४. ये आठ पाहुड और प्रत्येक की संस्कृत छाया, दंसणपाहुड आदि प्रारम्भ के छः पाहुडों की श्रुतसागरकृत संस्कृत टीका, रयणसार और बारसाणुवेक्खा 'षट्प्राभृतादिसंग्रहः' के नाम से माणिकचन्द्र दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला में प्रकाशित हुए हैं ।
५. तैंतालीस पाहुड के नाम पवयणसार की अंग्रेजी प्रस्तावना ( पृ० २५ के टिप्पण ) में दिये गये हैं ।
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