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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास पण करते हैं और इस प्रकार प्रकरण में कैसा निरूपण होना चाहिये इसका बोध कराते हैं। आगमिक प्रकरणों की रचना क्यों हुई यह भी एक विचारणीय प्रश्न है। विचार करने पर इसके निम्नलिखित कारण प्रतीत होते हैं : १. आगमों का पठन-पाठन सामान्य कक्षा के लोगों के लिए दुर्गम ज्ञात होने पर उन आगमों के साररूप से भिन्न-भिन्न कृतियों की रचना का होना स्वाभाविक है । इस तरह रचित कृतियों को 'आगमिक प्रकरण' कहते हैं । २. बहुत बार ऐसा देखा जाता है कि आगमों में कई विषय इधर-उधर बिखरे हुए होते हैं । ऐसे विषयों में से कुछ तो महत्त्व के होते ही हैं; अतः वैसे विषयों के सुसंकलित और सुव्यवस्थित निरूपण की आवश्यकता रहती है । इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए सुसम्बद्ध प्रकरण रचे जाने चाहिये, और ऐसा हुआ ३. आगमों में आनेवाले विषय सरलता से कण्ठस्थ किये जा सकें इसलिए उनकी रचना पद्य में होनी चाहिये, किन्तु आगमों में आनेवाले वे सभी विषय पद्य में नहीं होते । आगमिक प्रकरणों की रचना के पीछे यह भी एक कारण है। ४. आगमों में आनेवाले गहन विषयों में प्रवेश करने के लिए प्रवेशद्वार सरीखी कृतियों की प्रकरणों की योजना होनी चाहिये और इस दिशा में प्रयत्न भी किया गया है। ५. जैन आचार-विचार अर्थात् संस्कृति का सामान्य बोध सुगमता से हो सके, इस दृष्टि से भी आगमिक प्रकरणों का उद्भव हो सकता है और हुआ भी है। इस तरह उपर्युक्त एक या दुसरे कारण को लेकर पूर्वाचार्यों ने आगमों के आधार पर जो सुश्लिष्ट एवं सांगोपांग प्रकरण पाइय (प्राकृत) में और वह भी पद्य में लिखे वे 'आगमिक प्रकरण' कहे जाते हैं । ऐसा प्रतीत होता है कि प्रारम्भ में आगमिक प्रकरण प्राकृत पद्य में लिखे गये, परन्तु कालान्तर में संस्कृत में पद्य एवं गद्य उभयरूप में उनकी रचना हुई। स्थानकवासी एवं तेरापंथी सम्प्रदायों में थोकड़ा' (स्तबक ) के नाम से प्रसिद्ध साहित्य आगमिक प्रकरणों की मानो गुजराती आदि प्रादेशिक भाषाओं में रचित आवृत्तियाँ ही हैं । उनमें जीव, कर्म, लोक, द्वीप, ध्यान इत्यादि विषयों के बारे में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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