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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
अन्त में क्षपणाधिकार- चूलिका के रूप में उपलब्ध बारह संग्रह - गाथाओं में क्षपकश्रेणी के सम्बन्ध में विशेष प्रकाश डालते हुए कहा गया है कि जीव अनन्तानुबन्धी चतुष्क, मिथ्यात्व, सम्यक् मिथ्यात्व और सम्यक्त्व - इन सात कर्मप्रकृतियों का क्षपकश्रेणी पर चढ़ने से पूर्व ही क्षय करता है । क्षपकश्रेणी पर चढ़ते हुए अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में अन्तरकरण से पूर्व आठ मध्यम कषायों का क्षय करता है । तदनन्तर नपुंसकवेद, स्त्रीवेद, हास्यादि षट्क तथा पुरुषवेद का क्षय करता है । तत्पश्चात् संज्वलनक्रोध आदि का क्षय करता है, इत्यादि । '
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१. कसायपाहुड सुत्त, पृ० ८९७ -८९९.
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